Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Vimla Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 16
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भरतक्षेत्र का मगधदेश जिस भरतक्षेत्र का हम अवलोकन करने जा रहे हैं, उसमें एक मगध नाम का प्रसिद्ध देश है। उस देश की प्रजा भोग-संपदाओं से सदा प्रसन्न हो नित्य उत्सव किया करती रहती है। वहाँ मेघों की सदा प्रसन्नता रहती है अर्थात् योग्य समय पर यथायोग्य वर्षा हुआ करती है। न अतिवृष्टि होती है और न अनावृष्टि तथा अनीति के प्रचार से भी वह देश शून्य है। राजाओं द्वारा प्रजा भी कर से मुक्त होने के कारण बाधारहित है। वहाँ सदा सुकाल वर्तता है। वहाँ के खेत एवं वृक्ष सदा धान्य एवं फलों को प्रदान करते रहते हैं। जैसे - गुणवान ज्ञानीजन भव्यों के हृदय को आनंददायिनी वीतरागता की सौरभ सदा देते रहते हैं, वैसे ही मानो वहाँ के वृक्ष फलों से लदे हुए नम्रीभूत हो जगतजनों की क्षुधा शमन करने के लिए प्रेरणा करते रहते हैं, तथा पुष्प भी मंद-मंद सुगंध महकाते रहते हैं, पथिकगण भी मनमोहक वृक्षों की शीतल छाया का आनंद लाभ प्राप्त करते हैं। वहाँ के कूप और सरोवर जल से भरे हुए होने से मनुष्यों के आताप को हरते रहते हैं। निर्मल एवं शीतल जल से भरपूर वापिकाएँ मनुष्यों को उनकी तृषा बुझाने के लिये आह्वान करती हैं तथा उनके तटों पर स्थित वृक्ष अपनी छाया से सूर्यकृत आताप को हरते हैं। उस देश की नदियाँ अपनी कलरव ध्वनि से युक्त जलराशि से परिपूर्ण अपनी टेढ़ी-मेढ़ी गति से दूर तक बह रही हैं, जिससे मनुष्य एवं पशु-पक्षी अपनी प्यास की तृप्ति का लाभ उठाते हैं। झीलों के तटों पर हंस कमल की दंडी के साथ कल्लोल कर रहे हैं। वनों में बड़े-बड़े मल्ल हाथी विचर रहे हैं। वहाँ बड़े-बड़े स्कंधधारी दृढ़ वृषभ, जिनके सींगों में कर्दम लगा हुआ है, वे थल-कमलों को देखकर पृथ्वी को खोदते रहते हैं। उस देश में स्वर्गपुरी समान नगर हैं, कुरुक्षेत्र समान चौड़ी सड़कें हैं, स्वर्ग-विमान समान, सुन्दर घर हैं, देवों समान प्रजा सुखपूर्वक वास करती हुई शोभायमान हो रही है।

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