Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Vimla Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 106
________________ १०२ जैनधर्म की कहानियाँ ऐसे-ऐसे महान गुण हैं, वे आप जैसे गुणवानों के सहारे ही रहते हैं। दूसरे लोग पर की सहायता से जय प्राप्त करने पर भी अभिमान से उद्धत हो जाते हैं, मगर आपने बिना किसी की सहायता से अपने ही पराक्रम से विजय प्राप्त की है, फिर भी आप मदरहित एवं मानरहित हैं। लोक में भी कहावत है कि फलों से लदे हुए वृक्ष ही नमते हैं, फल रहित नहीं । हे सौम्यमूर्ति ! आपके समान कौन महापुरुष है, जो विजय-लाभ करके भी शांतभाव को धारण करे ?" इस तरह अन्य अनेक राजागण भी परस्पर में जम्बूकुमार का ही गुणगान कर रहे थे। इसीसमय अकस्मात् व्योमगति विद्याधर, राजा मृगांक को संबोधित कर बोल उठा " हे स्वामी! आपकी विजय हुई, आप पुण्य - प्रतापी हैं। आपने मदांध रत्नचूल को जीतकर अपनी यशपताका फहराई है। हे जम्बूकुमार! आपका भी पौरुष धन्य है, आप वीरों में भी प्रशंसनीय हैं, आपकी भी जय हो। आपका रणकौशल भी प्रशंसनीय है। मैने तो आपकी जैसी वीरता सुनी थी, वैसी ही आज प्रत्यक्ष देख ली । " - विद्याधर द्वारा मृगांक की झूठी प्रशंसा राजा रत्नचूल को सहन नहीं हुई। वह क्रोधित होकर बोला " हे विद्याधर ! तेरी इस मिथ्या प्रशंसा में क्या सत्य है ? सच है चापलूस लोग बड़े जनों की मिथ्या प्रशंसा कर वृथा उनका अहंकार बढ़ाते हैं। क्या सुनीतिज्ञ पुरुष उपकारी का उपकार भूलते हैं ? कभी नहीं । रत्नचूल को अपनी हार का जितना दुःख नहीं था, उससे अधिक मृगांक की मिथ्या प्रशंसा का दुःख हुआ । मैं गुणरहित को गुणी नहीं मान सकता, परन्तु ये तो प्रत्यक्ष ही गुणहीन दिखता है, जो गुणवान ( जम्बूकुमार) को गुणवान जाने दिना स्वयं बलमद से गर्वान्वित हो रहा है। " मुझे इसका गर्व चूर-चूर करना चाहिए - ऐसा विचार कर रत्नचूल बोला " हे व्योमगति और हे मृगांक ! सुनो! यह विजय तुम्हारे पौरुष की नहीं है। तुमने धीर-वीर-गंभीर कुमार के बल पर ही विजय प्राप्त की है। तुममें मेरा सामना करने का साहस नहीं है। तुम कायर हो, सियार हो, तुम्हारी बाहुओं में दम हो तो अब भी मैदान में पुनः आ जाओ, मैं तुम्हारे गर्व को चूर-चूर करने -

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