Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Vimla Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 162
________________ १५८ जैनधर्म की कहानियाँ और वैराग्योत्पादनी जैनेश्वरी दीक्षा अंगीकार कर ली। तथा पूर्ण आनंद की अभिलाषिनी, निज स्वरूप की साधिका चारों वधुओं सहित जिनमती माता ने भी पूज्य श्री सुप्रभा गणीजी के निकट जाकर आर्यिका दीक्षा अंगीकार कर ली। __इसके बाद श्रेणिक राजा आदि श्री सुधर्माचार्य आदि मोक्षमंडली को नमस्कार करके अपने-अपने गृह की ओर चल दिये। रागियों के राग ने घर की राह ली और वैरागियों के वैराग्य ने मोक्ष की राह ग्रहण की। अहो! संतों का सत्समागम!! जिनकी पावन परिणति से यह अचेतन देह तो वैरागी बन ही जाती है, परन्तु जिनका एकक्षेत्रावगाहरूप संबंध नहीं है ऐसे ये पेड़-पौधे, ये वृक्ष-समूह, यह वसुधा, यह पवन आदि भी मानो वैरागियों का सान्निध्य पाकर वैराग्य को प्राप्त हो जाते हैं। सम्पूर्ण वन में वीतरागी संत ही संत नजर आ रहे हैं। श्री जम्बूस्वामीजी सम्यक् रत्नत्रय से विभूषित हो अपने को कृतार्थ मानने लगे और कुछ दिनों के उपवास ग्रहण कर मौन आत्म-साधना में तल्लीन हो गये। श्री विद्युच्चर आदि ५०० मुनिराज तथा अर्हद्दास मुनिराज एवं अन्य राजा आदि जो मुनि हुए हैं; सभी यथाशक्ति उपवास धारण कर ध्यान करने लगे। पूज्य सुप्रभा गणीजी के साथ पाँच नवीन आर्यिकायें भी अपनी शक्ति एवं भूमिका के योग्य ध्यान, अध्ययन में रत हो गई। वे सब भी आत्मानंद का ध्यान कर रही हैं। उन्होंने भी अपनी पर्याय के योग्य उत्कृष्ट भूमिका का आरोहण किया है। श्री जम्बूस्वामी मुनिराज का प्रथम आहार उपवास पूर्ण होने पर दूसरे दिन श्री जम्बूस्वामी आदि मुनिराजों ने सिद्ध भक्ति की। उसके बाद सभी पारणा हेतु ईर्यासमिति-पूर्वक प्रासुक मार्ग पर चल कर शहर की ओर पधार रहे हैं। श्री जम्बूस्वामी आदि मुनीन्द्रों ने राजगृह में प्रवेश किया। उनकी शांत-प्रशांत मुखमुद्रा एवं वैरागी वदन को दूर से देखते ही नगरवासियों में खुशी की लहर दौड़ गयी। अपने कुमार पधारे, अपने स्वामी

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