Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Vimla Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 184
________________ जैनधर्म की कहानियाँ उपसर्ग के शांत होते ही सभी ने चार प्रकार की आराधनापूर्वक प्रातः काल में समाधिपूर्वक इस नश्वर काया का त्याग कर दिया । श्री विद्युच्चर मुनीन्द्र सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हो गये। वहाँ तेतीस सागर की आयु है। वहाँ मात्र दो ही काम हैं एक निज ज्ञायकप्रभु की आराधना और दूसरी ज्ञानाराधना । वह ज्ञानाराधना भी कैसी ? कि अपुनरुक्ति आराधना अर्थात् जिसकी पुनरुक्ति न हो। वहाँ से आकर वे विवेक-निधान मानव-भव धारण कर पूर्ण आराधना करके अपने धाम मोक्ष में जायेंगे। इसी प्रकार प्रभव आदि पाँच सौ मुनिकुंजर भी अपने-अपने परिणामों के अनुसार देह त्यागकर देव हुए। १८० - उपसंहार पूज्य श्री जम्बूस्वामी के इस वैराग्य उत्पादक एवं प्रेरक चरित्र का पठन करते ही अन्दर से मन इसे लिखने के लिए उमड़ पड़ा, इसलिए जैनागम के अनुसार यह चरित्र लिखा गया है। हे जगत वंद्य जिनवाणी माता ! सरस्वती माता ! यदि प्रमाद से, बुद्धि की हीनता से शब्द, वाक्य, अर्थ आदि में कोई भूल हो गई हो तो क्षमा करना । शास्त्र तो अगाध सागर है, परम गंभीर है, दुस्तर है। मुझ जैसे अल्पबुद्धिवानों से भूल होना स्वाभाविक है, इसलिए हे विशेषजन, ज्ञानीजन ! भूल को क्षमा करें। "सुधी सुधार पढे सदा ।" हे भव्यजीवों ! श्री जम्बूस्वामीजी का यह चरित्र ज्ञान-वैराग्य प्राप्त करने में तथा विषय कषाय से चित्त हटाने में रामबाण के समान अचूक औषधि है, इसलिए जो संसार सागर से पार उतरना चाहते हैं, उन्हें इस ग्रन्थ का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। ॥ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥

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