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भरण
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प्रथमोपशम सम्यक्त्वमें मरणके अभाव सम्बन्धी ।
६. अनन्तानुबन्धी विसंयोजकके मरणाभाव सम्बन्धी ।
उपशम श्रेणीमें मरण सम्बन्धी ।
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सल्लेखनागत क्षपकके मृत शरीर सम्बन्धी ।
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-दे० लेखना / ६
-६० मोक्ष |
मुक्त जीवके मृत शरीर सम्बन्धी सभी गुणस्थानों व मार्गणाख्यानोंमें आपके अनुसार व्यय होनेका नियम ।
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कृतकृत्यवेदकमें मरण सम्बन्धी ।
९ नरकगति मरणसमयके लेश्या व गुणस्थान ।
देवगति मरण समयकी लेश्या ।
आहारकमिश्र काययोगी के मरण सम्बन्धी ।
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१
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४
-दे० मार्गणा ।
गुणस्थान आदिमें मरण सम्बन्धी नियम
आयुबन्ध व मरणमें परस्पर गुणस्थान सम्बन्धी ।
निम्न स्थानोंमें मरण सम्भव नहीं ।
सासादन गुणस्थानमें मरण सम्बन्धी ।
मिश्र गुणस्थान में मरणके अभाव सम्बन्धी ।
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४ भोगभूमिजोंकी अकाल मृत्यु सम्भव नहीं।
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अकाल मृत्यु निर्देश
कदलीघातका लक्षण ।
मायुककी अकाल मृत्यु सम्भव नहीं। देव नारकियों की अकाल मृत्यु सम्भव नहीं।
चरमशरीरियों व शलाका पुरुषोंमें अकालमृत्युकी
सम्भावना व असम्भावना ।
जवन्य आयुमें अकाल मृत्युकी सम्भावना व
०खनार
፡ कदलीपात द्वारा आयुका अपवर्तन हो जाता है।
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अकाल मृत्युका अस्तित्व अवश्य है । अकाल मृत्युको सिद्धिमें हेतु ।
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११ । स्वकाल व अकाल मृत्युका समन्वय ।
असम्भावना |
पर्याप्त होनेके अन्तर्मुहूर्त काल तक अकाल मृत्यु सम्भव नहीं ।
आत्महत्याका कचित् विधि-निषेध ।
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मारणान्तिक समुद्घात निर्देश
मारणा समुद्घातका लक्षण
सभी जीव मारणान्तिक समुद्घात नहीं करते। ऋजु व वक्र दोनों प्रकारकी विग्रहगतिमें होता है। मारणान्तिक समुद्घातका स्वामित्व ।
बद्धकको ही होता है अबद्धायुष्कको
नहीं।
-३० मरण /५/७ ।
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प्रदेशका पूर्ण संकोच होना आवश्यक नहीं। इसकी स्थिति संख्यात समय है। - दे० समुद्धात । इसका विसर्पण एक दिशात्मक होता है३० समुद्रात ६ प्रदेशका विस्तार व आकार ।
मारणान्तिक समुद्घातमें मोड़े लेने सम्बन्धी दृष्टि मेद । - दे० क्षेत्र/२/४।
७ वेदना, कषाय और मारणान्तिक समुद्घातमें अन्तर । मारणान्तिक समुदयातमें कौन कर्म निमित्त है।
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१. भेद व लक्षण
इसमें तीनों योगों की सम्भावना कैसे दे० योग / ४ | इसमें योग सम्भव नहीं ३० विशुद्धि /-/ इसमें उत्कृष्ट व विशुद्ध परिणाम
-दे० विशुद्धि /२/४
सम्भव नहीं । मारणान्तिक समुद्घातमें महामत्स्यके विस्तार सम्बन्धी दृष्टिभेद
--दे० मरण /५/६ ।
१. भेद व लक्षण
१. मरण व सामान्यका लक्षण
स.सि /०/२२ /३६२/१२ स्वपरिणामोपात्तस्यायुष इन्द्रियामलानांच कारणवशात्संक्षयो मरणम् अपने परिणामोंसे प्राप्त हुई आयुका इन्द्रियोका और मन, वचन, काय इन तीन बलोका कारण विशेषके मिलनेपर नाश होना मरण है (स. सि. / ५ / २० / २०१/२) (रा. वा/ ५/२०/४/४०४/२१. ७/२२/१/२५० /१०) ( चा सा /४०/३) गोजी / जी. प्र. / ६०६/१०६२/१६) ।
ध. १/१.१.३३/२३४/२ आयुष क्षयस्य मरणहेतुत्वात् । - आयु कर्मके क्षयको मरणका कारण माना है। (ध -१३ / ५५०६३/३३२/११) । भ.आ./वि./२५/२५,०६/पति मरणं मिगमो विनाश विपरिणाम इयेकोऽर्थ अथवा प्राणपरित्यागो मरणम् ॥१३॥ अण्णाउगोदये वा मरदि य पुव्वाउणासे वा । (उद्धृत गा० १ पृ० ८६ ) । अथवा अनुभूयमानायु जगतन मरण मरण निगम, विनाश, विपरिणाम ये एकार्थवाचक है। अथवा प्राणोके परित्यागका नाम मरण है । अथवा प्रस्तुत आयुसे भिन्न अन्य आयुका उदय आनेपर पूर्व आयुका विनाश होना मरण है । अथवा अनुभूयमान आयु नामक गलका आत्माके साथसे विनष्ट होना मरण है ।
संज्ञक पुद्गलगलन ।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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२. मरणके भेद
भ. आ /मू./गा. पंडिदपदिमरणं पडिदमरण पडिदयं बालपंडिद चेव । बालमरण चउत्थ पंचमय बालबालं च | २६६ पायोपगमणमरण भत्तपइण्णा य इंगिणी चेव । तित्रिह पडियमरण साहुस्स जहुतचारि |२| तु तच सविचारमय अविचार 1 -२६५॥ तत्थ पढम णिरुद्ध विरुद्धतरयं तहा हवे विदिये । तदिय परमविरुद्ध एवं तिविध अमीषा २०१२ दुध पि अगीहारिमं पगास च अप्पगासं च । | २०१६ | मरण पाँच प्रकारका हैपण्डितपण्डित, पण्डित, बालपण्डित, बाल, बालबाल | २६| तहाँ पण्डितमरण तीन प्रकारका है- प्रायोपगमन, भक्तप्रत्याख्यान व गिनी || इनमें से भक्तप्रत्याख्यान दो प्रकारका है - सविचार और विचार | उनसे अविचार सीन शकारका है- निरज निरऊतर
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