Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 3
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 457
________________ लोक ४५० ४. वनखण्ड निर्देश १ सुमेरु पर्वत के तलभाग में भद्रशाल नामका प्रथम वन है जो पाँच मागोमे विम है-भद्रास मानुषोत्तर, देवरमण नागरमण और भूतरमण (ति //१००५). (इ ५०/५/२००) इस बनकी चारो दिशाओ में चार जिनभवन है । ( ति प /४/२००३). (त्रि सा./६११), ( १/४/४६) इनमें से एक मेरु पूर्व वा सीता नदी के दक्षिण है। दूसरा नेरुडी दक्षिण व सीतोदाने पूर्व है तीसरा मेरु पश्चिम तथा सीटोदाने उत्तरमे है और चोया मेरुके उत्तर व सीताके पश्चिममे है । ( रा. वा./३/१०/१७८ / १८ ) इन पैश्यालय का विस्तार पाण्डुरू बनके चैत्यालयोसे चौगुना है ( ति प / ४ / २००४ ) । इस बनमे मेरुकी चारो तरफ सीता व सीतोदा नदीके दोनों तटोपर एक-एक करके आठ दिग्गजेन्द्र पर्वत है । (दे० लोक / ३ / १२) २ भद्रशाल वन से ५०० योजन ऊपर जाकर मेरु पर्वतको कटनीपर द्वितीय वन स्थित है । (दे० पिछला उपशीर्षक १) । इसके दो विभाग है नन्दन व उपनन्दन । ( ति प /४/१०६), (६/२/३००) इसको पूर्वादि चारो दिशाओमे पर्वतके पासक्रमसे मान, धारणा, गन्धर्व व चित्र नामके चार भवन है। जिनमे क्रमसे सौधर्म इन्द्रके चार लोकपाल सोम, यम, वरुण व कुबेर क्रीडा करते है | ) ( ति प / ४ / १६६४-१९६६ ); ( पु / ३१५३९७), (त्रि. सा. ६१६. ६२९). ( प./२/०३-०४) कहीं-कहीं इन भवनो को गुफाओके रूपमें बताया जाता है। (रा बा./३/१०/१२/१०१/१४)। यहाँ भी मेरुके पास चारों दिशाओमे चार जिनभवन है (ति प२/१९६८). (शमा /३/१०/११/९०१ / १२). (२५) (त्रि सा. / ६११) प्रत्येक जिनमनके आगे दो-दो कूट है - जिनपर दिक्कुमारी देवियाँ रहती है। ति प की अपेक्षा आठ कूट इस नमे न होकर सौमनस यनमे ही है । ( ३० लोक /२/५) चारो दिशाओमे सौमनस बनकी भाँति चार-चार करके फूल १८ पुष्करिणयों है (ति.प./४/१९६८), (रा. ना /३/१०/११/२०६/२४) ( //३२४-२१०२४१-१४६). (त्रि. सा / ६२८), (१/४/११०-१११) इस मनको ईशान दिशामे एक बलभद्र नामका कूट है जिसका कथन सौमनस बनके बलभद्र कूटके समान है । इसपर बलभद्र देव रहता है । ( ति प /४/१६६७), (श वा./३/१०/२३/९७६/९६), (६/२/३२०), (त्रि सा/६२४ ), ( ज प / ४ / ६६ ) । ३. नन्दन वनमे ६२५०० योजन ऊपर जाकर सुमेरु पर्वत पर तीसरा सौमनस वन स्थित है (दे० लोक३.६२) इसके दो भाग है-सौमनस व उपसौमनस ति प /४/१८०६ ); (ह पु/५/३०८ ) । इसकी पूर्वादि चारो दिशाओ में मेरुके निकट वज्र, वज्रमय, सुवर्ण व सुवर्णप्रभ नामके चार पुर है, 1 ( ति प / ४ / १९४३ ), ( ह पृ./५/३१६ ), ( त्रि. सा. / ६२०), (ज. ५/४/६१) इनमें भी नन्दन सके भवनोपय सोम आदि लोकपाल क्रीडा करते है । (त्रि सा / ६२१) | चारो विदिशाओं मे चार-चार पुष्करिणी है । (पि./४/१६४६ २६६२-१६६६). Jain Education International २. जम्बूद्वीप निर्देश ( रा. वा /३/१०/१३/१८०/७) । पूर्वादि चारो दिशाओमे चार जिनभवन है (दि.१/४/१९६०). (४.५/२/२२७); (त्रि. सा. /६११ ); (ज. प. / ४ / ६४ ) । प्रत्येक जिन मन्दिर सम्बन्धी बाह्य कोटों के बाहर उसके दोनों कोनोंपर एक-एक करके कुल आठ कूट है। जिनपर दिक्कुमारी देवियाँ रहती है (दे० लोक /२/२) इसकी ईशान दिशामे बलभद्र नामका कूट है जो ५०० योजन तो बनके भीतर है और ५०० योजन उसके बाहर जाकाशमें निकला हुआ है । ति प / ४ / १६८१), (ज. प / ४ / १०१), इसपर बलभद्र देव रहता है। (ति प /४/१६४) मतान्तरकी अपेक्षा इस मनमें आठ कूट कूट नहीं है (रा. मा/३/१०/१३/१८०/८) । व बलभद्र । (दे सामनेवाला चित्र ) । ४. सौमनस वनसे १६००० योजन ऊपर जाकर मेरुके शीर्ष पर चौथा पाण्डुक वन है । (दे० लोक /०/६१) जो भूमिकाको पेटित करके शीर्मपर स्थित है (टि. १४) इसके दो विभाग है-पाण्डुक उप पाण्डुक । ( ति प /४/१८०६ ), ( ह पु/५/३०६ ) | इसके चारों दिशाओमे लोहित अंजन हरिद्र और पाण्डुक नामके चार भवन हैं जिनमें सोम आदि लोकपाल क्रीडा करते है। (ति १४/१८६६ १०५०); (ह पु. / ५ / ३२२ ), (त्रि. सा. / ६२० ), ( ज. प /४/१३ ), चारों विदिशाओमे चार-चार करके १६ पुष्करिणियाँ है । ( रा वा /३/१०/१६/१८०/२६ ) | वनके मध्य चूलिकाकी चारों दिशाओमे चार जिनभवन है । ( ति प /४/१८५५. १६३५ ); (रा. वा/३/१०/१२/१८०/२०) (१.१/२/१५४) (त्रि सा / ६९९ ) (४४) बनी ईशान आदि दिशाओ में अर्थ चन्द्राकार चार खिलाएँ है-पाक शिला पाण्डुर्वक्ता शिक्षा, रफता शिला, और रक्तशिला । रा वा के अनुसार ये चारो पूर्वादि दिशाओमे स्थित है। ( ति प /४/१८१८ १८३० - १८३४ ), ( रा वा /३/१०/१३/१०/१५ ), (इ पु/५/३४०), प्रसा०३). (१/४/१३०-१४९) इन सिताऑपर कमसे भरत. अपर निदेह, ऐरावत और विदेहके तीर्थंकरोका जन्माभिषेक होता है ( ति. ४/१०२०१०३१-१८३५) ( रा वा /३/१०/११/१८०/२२ ) (ह. पु. / ५ / ३५३), (त्रि. सा./६३४ ); (ज. प./४/१४८-१५० ) । चित्र सं०- १६ पाण्डुक वन पाण्डुक वन पूर्व विदेह के तीर्थकर हरिद्र भवन, वरुण देव 4 रक्त शिला रक्त जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only age कुबेर देव पाण्डुक भवन G चूलिका १२ यो० कम्बला शिला*. ऐरावत क्षेत्र के तीर्थकर EE भरत क्षेत्र के तीर्थकर पाण्डुक शिला SUNIL P 1901 ACADE पुष्करिणये Ep कम्बला शिल् लोहित भवन सोमदेव -90002710 अजन भवन ( उस उस शिला पर उस उस यम देव क्षेत्र के तीर्थकरों का जन्माभिषेक होता है ★ अपर विदेह के तीर्थकर www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639