Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 3
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 525
________________ वर्गणा ५१८ वर्गमूल होनेमे विरोध आता है। महास्कन्धके भेदसे इस वर्गणाकी उत्पत्ति होती है, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योकि. महास्कन्धसे अलग हुए स्कन्ध यत. महास्कन्धके भेदसे अलग हुए है, अत उनकी महास्कन्ध सज्ञा नही हो सकती और इसलिए उनका उससे भेद नहीं बन सकता। इस (पर्यायाथिक ) नयका अवलम्बन करनेपर ऊपरकी वर्गणाओके भेदसे यह.वर्गणा नहीं होती है, यह कहा गया है। परन्तु द्रव्याथिक नयका अवलम्बन करने पर ऊपरकी वर्गणाओंके भेदसे भी यह वर्गणा होती है। पर्यायाथिक नयका अवलम्बन कर लेनेपर नीचेकी वर्गणाओके सघातसे भी यह वर्गणा होती है, क्योकि उत्कृष्ट ध वस्कन्धवर्गणामें एक आदि परमाणुका समागम होनेपर सान्तरनिरन्तर वर्गणाकी उत्पत्ति होनेमें कोई विरोध नहीं है। केवल स्वस्थानमे ही परिणमन होता है, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, जघन्य वर्गणासे एक परमाणु अधिक वर्गणाकी उत्पत्ति होने में विरोध आता है, दूसरे सान्तरनिरन्तर वर्गणाका अभाव भी प्राप्त होता है। ध्र वस्कन्धादि नीचेको वर्गणाएँ स्वस्थानमें ही समागमको प्राप्त होती है अथवा ऊपरको वर्गणाओंके साथ समागमको प्राप्त होती हैं, क्योंकि ऐसा स्वभाव है। परन्तु सान्तरनिरन्तरवर्गणा स्वस्थानमें ही भेदसे, सघातसे या तदुभयसे परिणमन करती है, इस बातका ज्ञान करानेके लिए (सूत्रमें ) 'भेदसंघातसे होना' कहा है। ध. १४/५,६,११६/१३६/४ सुण्णाओ सुग्णत्तेष्ण अधुवाओ वि, उवरिमहे ठिमबग्गणाण भेदसघादेण सुण्णाण पि काल तरे असुण्णुत्तुवलभादो । असुण्णाओ असुण्णतणेण अधुवाओ । कुदो । बग्गणरणमेगसरूवेण सबद्धमवठाणाभावादो। वग्गणादेसेण पुण सव्वाओ धुवाओ; अण ताण तवग्गणाण सव्वद्धमुवल भादो। मुहमणिगोदवग्गणाओ सुण्णत्तेण अधुवाओ, सुण्णवग्गाहि सव्यकाल सुण्णत्तणेणेत्र अच्छिदवमिदि णियमाभावादो। एदं सभवं पडुच्चपरूविद । वत्ति पडच्च पुणभण्णमाणे सुण्णाओ सुण्णत्तेण धुवाओ वि अत्थि; वट्टमाणकाले असखेजलोगमेत्तसुहमणिगोदवग्गणाहि अदीदकालेण वि सबजीवेहि अण तगुणमेत ठाणावूरणं पडिसमवाभावादो । कारण बादरणिगोदाणं व वत्तव्यं । अदधुवाओ वि, उबरिम-हेटिठमवग्गणाणं भेदसघादेश मुण्णाणं पि काल तरे अमुण्णतु बलभादो। -शून्य वर्गणाएँ शून्यरूपसे अध्र व भी है, क्योकि उपरिम और अधस्तन वर्गणाओके भेदसघातसे शून्य वर्गणाएं भी कालान्तरमें अन्यरूप होकर उपलब्ध होती हैं। अशून्य वर्गणाएँ अशून्यरूपसे अघ ब है, क्योकि वर्गणाओंका एक रूपसे सदा अवस्थान नहीं पाया जाता। वर्गणादेशको अपेक्षा तो सब वर्गणाएँ ध्रुव है, क्यो कि, अनन्तानन्त वर्गणाएँ सर्वदा उपलब्ध होती है। सूक्ष्मनिगोदवर्गणाएँ शून्यरूपसे अध व है, क्योंकि, शून्यवर्गणाओको सर्वदा अन्यरूपसे हो रहना चाहिए ऐसा कोई नियम नहीं है। यह सम्भवको अपेक्षा कहा है परन्तु व्यक्तिकी अपेक्षा कथन करनेपर शून्य वर्गणा शुन्यरूपसे ध्रव भी है, क्योकि, वर्तमान कालमे असख्यात लोकप्रमाण सूक्ष्मनिगोद वर्गणाओंके द्वारा पूरे अतीतकाल में भी सब जीवोसे अनन्तगुणे स्थानों का पूरा करना सम्भव नही है। कारण बादरनिगोद जीवो के समान वाहना चाहिए । वे अध व भी है, क्योकि उपरिम और अधस्तन वर्गणाओके भेद सघातसे शून्यवर्गणाए भी कालान्तरमें अशून्यरूप होकर उपलब्ध होती है। अशून्य सूक्ष्मनिगोद वर्गणाएं अन्यरूपसे अधु व है, क्योंकि, सूक्ष्मनिगादवर्गणाओंका अवस्थितरूपसे अवस्थान नहीं पाया जाता। ध १४/५.६.१०७/१२५/१३ ण पत्ते यत्रादरसुहमणिगोदवग्गणाभेदेण होदि, सचित्तवग्गणाणमचित्तवग्गणसरूवेण परिणामाभावादो। ण च सचित्तबग्गणाए कम्मणोकम्मक्खधेसु तत्तो विष्फट्टिय सातरगिर तरवग्गणाणमायारेण परिणदेसु तम्भेदेणेवे दिस्से समुप्पत्ती; तत्तो विष्फट्टसमए चेव ताहितो पुदभूदखधाण सचित्तवग्गणभावविरो१.दो। ण महारत्रधभेदेणेदिस्से समुप्पत्तो, महाख धादो विष्फट्टख धाणं महाखधभेदेहितो पुधभूदाण महाख धववएसाभावेण तेसि तम्भेदत्तागुववत्तीदो। एदम्मि णए अवल बिजमाणे उबरिल्लोण वग्गणाण भेदेण ण होदि त्ति परूबिद । दबटिठयणए पुण अवलं बिज्जमाणे उपरिल्लीणं भेदेण वि होदि। पज्जवठ्ठियणए पुण अवल बिज्जमाणे हे ट्ठिल्लीणं सघादेण वि होदि; उक्कस्स धुववधवग्गणाए एगा दिपरमाणुसमागमे सातरणिर तरबग्गणाए समुप्पत्ति पडि विरोहाभावादो। ण सत्याण र परिणामो वि, जहण्ण वग्गणादो परमाणुत्तरबग्गणाए उम्पत्तिविरोहादो सातगिर तरवग्गणाए अभावष्पसगादो च। धुखधादिहे ठिमवग्गणाओ सस्थाणे चेव समागमति उरिमनग्गणाहि वा, साहाविगादो। सादरणिर तरवग्गणा पुण सरथाणे चेब भेदेण सघादेण तदुभयेण बा परिणमदि त्ति जाणावणट्ठ भेद सघादेणे त्ति परू विद । प्रत्येकशरीर, बादरनिगांद और मूक्ष्म निगोदवर्गणाओके भेदमे यह (ध बस्वन्ध व सान्तर निरन्तर ) वर्गणा नही होती यो वि मचित्त बर्गणाओं का अचित्त वर्गणा रूप से परिणमन होने मे बिरोध है। यदि कहा जाये कि सचित्तागणाके कर्म और नोर्मस्कन्धा मे उसमे अलग होकर साम्लरनिरन्तर वर्गणारूपसे परिणत होनेपर उनके भेदसे इस वर्गणाकी उत्पत्ति होता है, मैं कहना भो ठीक नहीं है, क्योकि, उनसे अलग होने के समय ही उनये अलग हुए स्कन्धोको सचित वर्गणा ९. भेदसंघात व्यपदेशका स्पष्टीकरण ध. १४/५,६,१०३/१२४/६ हेट्ठिल्लुरिल्लवग्गणाणं भेदसघादेण अप्पिदवग्गणाणमुप्पत्ती क्ण्णि बुच्चदे, भेदकाले विणास मोत्तण उप्पत्तीए अभाव पडिविसेसाभावादो । ण, तत्थ एवं विधणयाभावादो। अथवा भेटसंघादस्स एवमत्थो बत्तव्यो । त जहाभेदसघादाणं दोपणं सजोगो सत्थाण णाम: तम्हि णिरुद्धे उबरिल्लीण हेढिल्लोण अप्पिदाण च दवाण भेदपुर गमसघादेण अप्पिदवग्गणुप्पत्तिदंसणादो । सस्थाणेण भेदसंघादेण उप्पत्ती बुच्चदे। सब्यो वि परमाणुसधादो भेदपुर गमो चेवेत्ति सब्बासि बग्गणाण भेदसधादेणेव उप्पत्ती किण्ण बुच्चदे । ण एस दोसो, भेदाण तरं जो सधादो सो भेदसघादो णाम ण अतरिदो, अञ्चबत्थाप्पसगादो । तम्हा ण सव्यवग्गणाण भेदसधादेणुप्पत्ती। = प्रश्न-नीचेकी और ऊपरकी वर्गाओके भेदसघातसे विवक्षित वर्गणाओंकी उत्पत्ति क्यो नही कहते, क्योंकि भेदके समय विनाशको छोडकर उत्पत्तिके अभावके प्रति कोई विशेषता नहीं। उत्तरनहीं, क्योकि, वहाँ पर इस प्रकारके नयका अभाव है। अथवा भेदसघातका इस प्रकारका अर्थ करना चाहिए। यथा-भेद और सघात दोनोवा संयोग स्वस्थान कहलाता है। उसके विवक्षित होनेपर ऊपरके, नोचेके और विवक्षित द्रव्योके भेदपूर्वक सघातसे विवक्षित वर्गणाकी उत्पत्ति देखी जाती है। इसे स्वस्थानकी अपेक्षा भेद स वातसे उत्पत्ति के हरो है। प्रश्न-सभी परमाणुसघात भेदपूर्वक ही होता है, उमलिए सभी वर्गणाओकी उत्पत्ति भेदसघातसे ही क्यो नही बहते हो उत्तर-यह कोई दोष नहीं है, क्योकि, भेदके अनन्तर जो सबात होता है, उसे भेदसघात कहते हैं। जो अन्तरसे होता है उसको यह सज्ञा नहीं है, क्योकि, ऐसा मानने पर अव्यवस्थाका प्रमग आता है। इसलिए सर्व वर्गणाओकी उत्पत्ति भेदसघातमे नहीं होती। वगणा शलाका-क्ष. सा/भाषा/४६४/५७८/१३- एक स्पर्धक विष जो वर्गणानिका प्रमाण ताकी वर्ग शलाका कोि ।-(विशेष दे. स्पर्धक )। ---Square root-(ज, प/प्र.१०८), (ध.५/प्र.२८), (विशेष दे. गणित/II/१/७) । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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