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________________ भरण 1 १ २ ४ ५ 500 9 ७ १० ११ प्रथमोपशम सम्यक्त्वमें मरणके अभाव सम्बन्धी । ६. अनन्तानुबन्धी विसंयोजकके मरणाभाव सम्बन्धी । उपशम श्रेणीमें मरण सम्बन्धी । ६ सल्लेखनागत क्षपकके मृत शरीर सम्बन्धी । ७ -दे० लेखना / ६ -६० मोक्ष | मुक्त जीवके मृत शरीर सम्बन्धी सभी गुणस्थानों व मार्गणाख्यानोंमें आपके अनुसार व्यय होनेका नियम । ८ कृतकृत्यवेदकमें मरण सम्बन्धी । ९ नरकगति मरणसमयके लेश्या व गुणस्थान । देवगति मरण समयकी लेश्या । आहारकमिश्र काययोगी के मरण सम्बन्धी । ५ १ ‍ ३ ४ -दे० मार्गणा । गुणस्थान आदिमें मरण सम्बन्धी नियम आयुबन्ध व मरणमें परस्पर गुणस्थान सम्बन्धी । निम्न स्थानोंमें मरण सम्भव नहीं । सासादन गुणस्थानमें मरण सम्बन्धी । मिश्र गुणस्थान में मरणके अभाव सम्बन्धी । १ २ ३ ४ भोगभूमिजोंकी अकाल मृत्यु सम्भव नहीं। ५ अकाल मृत्यु निर्देश कदलीघातका लक्षण । मायुककी अकाल मृत्यु सम्भव नहीं। देव नारकियों की अकाल मृत्यु सम्भव नहीं। चरमशरीरियों व शलाका पुरुषोंमें अकालमृत्युकी सम्भावना व असम्भावना । जवन्य आयुमें अकाल मृत्युकी सम्भावना व ०खनार ፡ कदलीपात द्वारा आयुका अपवर्तन हो जाता है। ९ अकाल मृत्युका अस्तित्व अवश्य है । अकाल मृत्युको सिद्धिमें हेतु । १० ११ । स्वकाल व अकाल मृत्युका समन्वय । असम्भावना | पर्याप्त होनेके अन्तर्मुहूर्त काल तक अकाल मृत्यु सम्भव नहीं । आत्महत्याका कचित् विधि-निषेध । Jain Education International मारणान्तिक समुद्घात निर्देश मारणा समुद्घातका लक्षण सभी जीव मारणान्तिक समुद्घात नहीं करते। ऋजु व वक्र दोनों प्रकारकी विग्रहगतिमें होता है। मारणान्तिक समुद्घातका स्वामित्व । बद्धकको ही होता है अबद्धायुष्कको नहीं। -३० मरण /५/७ । २७९ ५ प्रदेशका पूर्ण संकोच होना आवश्यक नहीं। इसकी स्थिति संख्यात समय है। - दे० समुद्धात । इसका विसर्पण एक दिशात्मक होता है३० समुद्रात ६ प्रदेशका विस्तार व आकार । मारणान्तिक समुद्घातमें मोड़े लेने सम्बन्धी दृष्टि मेद । - दे० क्षेत्र/२/४। ७ वेदना, कषाय और मारणान्तिक समुद्घातमें अन्तर । मारणान्तिक समुदयातमें कौन कर्म निमित्त है। ८ * १. भेद व लक्षण इसमें तीनों योगों की सम्भावना कैसे दे० योग / ४ | इसमें योग सम्भव नहीं ३० विशुद्धि /-/ इसमें उत्कृष्ट व विशुद्ध परिणाम -दे० विशुद्धि /२/४ सम्भव नहीं । मारणान्तिक समुद्घातमें महामत्स्यके विस्तार सम्बन्धी दृष्टिभेद --दे० मरण /५/६ । १. भेद व लक्षण १. मरण व सामान्यका लक्षण स.सि /०/२२ /३६२/१२ स्वपरिणामोपात्तस्यायुष इन्द्रियामलानांच कारणवशात्संक्षयो मरणम् अपने परिणामोंसे प्राप्त हुई आयुका इन्द्रियोका और मन, वचन, काय इन तीन बलोका कारण विशेषके मिलनेपर नाश होना मरण है (स. सि. / ५ / २० / २०१/२) (रा. वा/ ५/२०/४/४०४/२१. ७/२२/१/२५० /१०) ( चा सा /४०/३) गोजी / जी. प्र. / ६०६/१०६२/१६) । ध. १/१.१.३३/२३४/२ आयुष क्षयस्य मरणहेतुत्वात् । - आयु कर्मके क्षयको मरणका कारण माना है। (ध -१३ / ५५०६३/३३२/११) । भ.आ./वि./२५/२५,०६/पति मरणं मिगमो विनाश विपरिणाम इयेकोऽर्थ अथवा प्राणपरित्यागो मरणम् ॥१३॥ अण्णाउगोदये वा मरदि य पुव्वाउणासे वा । (उद्धृत गा० १ पृ० ८६ ) । अथवा अनुभूयमानायु जगतन मरण मरण निगम, विनाश, विपरिणाम ये एकार्थवाचक है। अथवा प्राणोके परित्यागका नाम मरण है । अथवा प्रस्तुत आयुसे भिन्न अन्य आयुका उदय आनेपर पूर्व आयुका विनाश होना मरण है । अथवा अनुभूयमान आयु नामक गलका आत्माके साथसे विनष्ट होना मरण है । संज्ञक पुद्गलगलन । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only २. मरणके भेद भ. आ /मू./गा. पंडिदपदिमरणं पडिदमरण पडिदयं बालपंडिद चेव । बालमरण चउत्थ पंचमय बालबालं च | २६६ पायोपगमणमरण भत्तपइण्णा य इंगिणी चेव । तित्रिह पडियमरण साहुस्स जहुतचारि |२| तु तच सविचारमय अविचार 1 -२६५॥ तत्थ पढम णिरुद्ध विरुद्धतरयं तहा हवे विदिये । तदिय परमविरुद्ध एवं तिविध अमीषा २०१२ दुध पि अगीहारिमं पगास च अप्पगासं च । | २०१६ | मरण पाँच प्रकारका हैपण्डितपण्डित, पण्डित, बालपण्डित, बाल, बालबाल | २६| तहाँ पण्डितमरण तीन प्रकारका है- प्रायोपगमन, भक्तप्रत्याख्यान व गिनी || इनमें से भक्तप्रत्याख्यान दो प्रकारका है - सविचार और विचार | उनसे अविचार सीन शकारका है- निरज निरऊतर www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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