________________
अल्पसावद्य
१७६
अवक्तव्य
७. अष्टकर्म बन्ध वेदनामे स्थिति, अनुभाग, प्रदेश व प्रकृति बन्धोंकी अपेक्षा ओघ व आदेश स्व पर स्थान अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ: प्रमाण
विषय १.स्थिति बन्धवेदना.१ष. खं. ११४४,२,६/सू२५-३५४१३७-१३६ अष्टकर्मकी जघन्य उत्कुष्ट स्थिति सम्बन्धी स्थिति वेदनाकी परस्थान प्ररूपणा २ ष,ख. ११/४,२,६/सू१२३-१६४/२०७-२७६ ___..
आबाधा व काण्डको सम्बन्धी स्व पर स्थान प्ररूपणा सामान्य ३ ध. ११/४,२,६/१६४/२८०-३०८ .
विशेष ४ष खं. ११/४,२.६/सू१८२-२०३/३२१-३३२ साता असाता के द्वितीय, वित्तीय, चतुर्थ आदि स्थानों के अनुभाग बन्धक जीव विशेषों में
__अष्टकर्मकी जघन्य उत्कृष्ट स्थिति सम्बन्धी पदोका परस्थान अल्पब हुत्व ५ष खं ११/४,२,६/सु२०६-२३८/३३४-३४४ उपरोक्त जीवोमें अष्टकर्मों के स्थिति बन्ध स्थानोंका परस्थान अल्पबहुत्व ६ष.ख ११/४,२,६/१२४१-२४५/३४६-३४६ अष्टकर्म स्थिति बन्धके सामान्य अध्यवसाय स्थानों सम्बन्धी परस्थान प्ररूपणा ७ष. खं. ११/४,२,६/सू२५२-२६६/३५२-३६२
___. . जघन्य उत्कृष्ट अध्यवसाय स्थानो सम्बन्धी ८ष ख. ११/४,२.६/सू.२७२-२७६/३६६-३६८ ... . .. स्थानों के योग्य तीव्र मन्द परिणामों सम्बन्धी प्ररूपणा हम ब २/सू२/२
चौदह जीव समासों में मूल प्रकृति स्थिति बन्ध स्थानों सम्बन्धी प्ररूपणा १० म.ब.२/१५-१६/६-१२
.
में प्रथम समयसे लेकर अन्तिम समय तकके निषेको सन्बन्धी प्ररूपणा ११ म.ब. २/सू १८-२२/१३-१६
चौदहजीव समासोंमें मूल प्रकृतिके ज उ स्थिति बन्धस्थानों, आबाधा स्थानों व काण्डकों संबंधी १२ म.ब.२/सू १६-२१/२२८-२२६
नं. १० वत् ही परन्तु उत्तर प्रकृतिको अपेक्षा १३ म.ब. २/सू २३-२४/२३०
नं.१२ बत् ही . "
" २. अनुभाग बन्ध वेदना.१ष.वं.१२/४,२, सू४०-६४/अ.सू.१-३/३१-४४ अष्टकर्म मूलोत्तर प्रकृति के ज. उ. अनुभागोदय सम्बन्धी स्व व पर स्थान प्ररूपणा २ प. वं. १२/४,२,७/६४-११७/४४-५६ अष्टकर्म उत्तर प्रकृति उत्कृष्ट अनुभाग बन्धकी परस्थान प्ररूपणा ३ ध. १२/४,२,७,११७/६०६२
, , , , . , स्वस्थान . ४ष खं १२/४,२,७/सू११८-१७४/६५-७५
" . जघन्य ,
परस्थान घ. १२/४,२,७,१७४/७५-७८
.. . .
स्वस्थान , ६ ध,१२/४,२,७,२०१/११४-१२७
१४ जीव समासोमें ज.उ, अनुभाग बन्ध स्थानोंके अन्तर सम्बन्धो प्ररूपणा ७ध १२/४,२,७,२०२/१२८
. , ज. अनु. बन्ध व ज, अनु सत्व सम्बन्धी परस्थान प्ररूपणा ८ ष खं.१२/४,२.७/सु२३६-२४०/२०५-२०७ यव मध्य रचना क्रममें अनुभाग बन्ध अध्यवसाय स्थानो सम्बन्धी प्ररूपणा
पखं १२/४,२,७/सू२६० २६२/२६६-२६७ हष ख १२/४,२,७/सू२७६-२८४/२४७-२६५ ज उ बन्ध अध्यवसायके सामान्य स्थानों में जीवोके प्रमाण सम्बन्धी प्ररूपणा
ष ख १२/४,२,७/१३०४-३१४/२७२-२७४ १०ष ख १२/४ २,७/१२६३-३०३/२६७-२७२ | अनुभाग बन्ध अध्यवसाय स्थानों में जीवोके स्पशन काल सम्बन्धी प्ररूपणा ३ प्रदेश बन्ध वेदना - १ध. १०/११७-१२१
अष्टकर्म प्रकृतियो के ज उ प्रदेशों के सत्त्व सम्बन्धी प्ररूपणा २ष ख १०/४,२.४/सु १२४-१४३/३८५-३६४
. .. ... पदों सम्बन्धी प्ररूपणा ३ ष.ख. १०/४,२,४/सु१७४/४३१
प्रदेश बन्ध का अल्पबहुस्त्र योग स्थानों के अस्पबहुत्व वत् ही है ४ ध.१०/४,२,४,१८१/४४८/१६
प्रथमादि योग वर्गणाओमें जीव प्रदेशों सम्बन्धी प्ररूपणा ५ध १०/४,२,४,१८६/४७६
योग वर्गणाओंके अविभाग प्रतिच्छेदो सम्बन्धी प्ररूपणा ६ घ, ११/४,२,४,२०५/५०२
योगों में गुण हानि वृद्धि सम्बन्धी प्ररूपणा ७ध, १०/४,२,४,२८/१५-१६
ज उ योग स्थानोमें स्थित जीवोके प्रमाण सन्बन्धी प्ररूपणा ८ध. ११/४/२,५,१७/३३/१
उत्कृष्ट क्षेत्रो में स्थित जीवो सम्बन्धी प्ररूपणा ६१.१२/४,२,७,१६६/१०२ १०४,११०
ज उ बर्गणाओंमें दिये गये कर्म प्रदेशो सम्बन्धी परस्थान प्ररूपणा ४, प्रकृति बन्ध वेदना - १ष खं १२/४,२,१६/सू १-२६/५०६-५१२ अष्ट कर्म मूनोत्तर प्रकृतियोके असंख्याते भेदो सम्बन्धी परस्थान प्ररूपणा
२ ष. खं.१३/५.५/सु१२४-१३२/३८४-३८७ । चारो गति सम्बन्धी आनुपूर्वी नाम कम प्रकृतिके भेदोको परस्थान प्ररूपणा अल्प सावद्य-दे सावध ।
अवंति वर्मा-कश्मीर नरेश-समय = ई ८८४ (ज्ञा, प्र ६/4. पन्ना अवंति-मालवा नरेश थे। प्रद्योत आपका अपर नाम था। अवन्ती लाल बाकलीवाल)
या उज्जैनी राजधानी थी। आप प्रसिद्ध राजा पालकके पिता थे अवंती-१ भरत क्षेत्र आय खण्डका एक देश-दे मनुष्य/४. २.वर्त जो वीर निर्वाणके समय राज्य करते थे। तदनुसार आपका समय- मान उज्जैनका पार्श्ववर्ती देश। उज्जैनी इसकी राजधानी है। वी. नि पू. ३३-०ई पू५६०-६७०) आता है-दे इतिहास ३/४ (ह. पहिले यह नगर वर्तमान मालवा प्रान्तमें ही सम्मिलित था। (म पु./ पु.६०/४८८); (क पा १/प्र.५१/५ महेन्द्रकुमार)
प्र ४८/पं. पन्नालाल)। अवंति कामा-भरत क्षेत्रमें आर्य खण्डकी एक नदी ।-दे
अवक्तव्य-ध. १/४.१,६६/२७४/२४ दोरूवेसु बग्गिदेसु वढिदंस मनुष्य ४।
णादो दोण्णं णणो कदिस । तत्तो मूलमवणिय वग्गिदे ण बड्ददि जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org