Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 1
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 411
________________ उदय ३९६ ६. कर्म प्रकृतियोंकी उदय व उदययस्थान प्ररूपणाएं प्रमाण पं.स. मार्गणा उदय काल उदय काल स्थान भंग | प्रकृतियों का विवरण भंगों का विवरण गा । १७० आहारक शरीर सहित मनुष्य-उदय योग्य-२६, उदय स्थान = ४ (२५,२७,२८,२६), भग-४ १७१ । | मिश्र शरीर काल | २५॥ १। मनु, गति, तैजस कार्माण शरीर, पंचे. जाति, आहारक७ | शरीर, अगो., वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, उपघात, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, आदेय, त्रस, पर्याप्त, भादर, प्रत्येक, समचतुरस्र संस्थान, सुभम, यश, निर्माण -२५ शरीर पर्याप्ति काल | २७ उपरोक्त २५+ परघात, प्रशस्त विहायो, उच्छ्वास ,, , | २८ उपरोक्त २७+ उच्छ्वास -२८ भाषा , २६ १ उपरोक्त २८+सुस्वर केवली मनुष्य-उदययोग्य-३१, उदय स्थान-४ (३१,३०,६८) १७६ तीर्थकर सयोगी ३१) १ । मनु गति, पंचे.जाति, औ.शरीर, अगोपांग, तैजस कार्माण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, समचतुरस्र सस्थान, वज्र' ऋषभ नाराच सहनन, अगुरुलघु, उपधात, परघातउच्छवास, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, प्रशस्त विहायो., शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, यश कीति, निर्माण, आदेय, तीर्थ कर सामान्य सयोगी उपरोक्त ३५-तोथंकर १७६ तीथंकर अयोगी मनुष्य गति, पंचे. जाति, सुभग, प्रस, बादर, पर्याप्त, १८० सामान्य अयोगी आदेय, यश, तीथंकर उपरोक्त ६-१ ४ -२६ समुद्रात गत केवली (घ.७/२,१,११/५५-५६) सामान्य केवली | प्रतर व लोकपूर्ण | २० १ मनुष्य आहारक रहितकी २१ स्थानकी१६+पर्याप्त, सुभग, शरीर पर्याप्ति काल - आदेय, यश. तीथंकर , उपरोक्त २०+ तीर्थङ्कर सामान्य , कपाट गत.. २६ है | उपरोक्त २०+औ.द्वि.,६ संस्थानमें एक, वज्र, उप. प्रत्येक | ६ संस्थानमें अन्यतम शरीर पर्याप्ति काल तीर्थङ्कर . २७ १ उपरोक्त २६ (परन्तु केवल एक समचतुरस्र संस्थान) समचतु. ही संस्थान है +तीर्थङ्कर २७ सामान्य, दंड गत उपरोक्त २६+ परघात, २ विहायो.में अन्यतम २८६ संस्थानx२ विहायो शरीर पर्याप्ति काल | तीर्थङ्कर , | २६ १ | उपरोक्त २८ (परन्तु केवल एक शुभ संस्थान व विहायो.) शुभ ही संस्थान व +तीर्थङ्कर विहायो सामान्य , उच्छ्वास पर्या, काल २१ १२ उपरोक्त २८ + उच्छ्वास ==२६६ संस्थानx२ विहायो. तीर्थङ्कर , . ३०१ | उपरोक्त २६ (परन्तु केवल एक शुभ संस्थान व विहायो.)। शुभ ही संस्थान व | सर्व भंग ३५ + तीर्थङ्कर बिहायो, ४. देवगति-उदय योग्य-३०, उदय स्थान -५ (२१.२१,२७,२८,२६); भग-५ देवगति सामान्य कार्माण काल २१ १ । देवगति, पंचे. जाति, तैजस कार्माण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, त्रस, बादर, अपर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, आदेय, यश, निर्माण, देवआनु =२१ मिश्रशरीर पर्या. काल २५ १ उपरोक्तम-से पहली २०+वैक्रि. द्वि , उपघात, सम / चतुरस्र, प्रत्येक शरीर पर्या., २७ उपरोक्त २५+ परघात, प्रशस्त विहायो. उच्छवास ,, , २८ उपरोक्त २७+ उच्छ्वास भाषा , |२६ १ उपरोक्त २८+सुस्वर सर्व भंग जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506