Book Title: Jain Stotra Ratnamala
Author(s): Kothari Kasalchand Nimji
Publisher: Kothari Kasalchand Nimji
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(१५६) ॥अथ चतुर्थोऽध्यायः॥ . देवाश्चतुनिकायाः १॥ तृतीयःपी तलेश्यः ॥ दशाष्टपंच हादशविकस्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः३॥इंसा मानिकत्रायस्त्रिंशपारिषद्यात्मरकलो क पालानीक प्रकीर्णकान्नि योग्यकि बिषिकाश्चैकशः॥त्रायस्त्रिंशलोक पालवर्जा व्यंतरज्योतिष्काः । पूर्व यो क्षः ६॥ पीतांतलेश्याः ॥ का यप्रवीचारा आऐशानात् ॥ शेषाः स्पर्शरूपशब्दमनःप्रवीचाराद्वयोईयो मा परेऽप्रवीचाराः १णानवनवासि नोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णा निवातस्तनि

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