Book Title: Jain Stotra Ratnamala
Author(s): Kothari Kasalchand Nimji
Publisher: Kothari Kasalchand Nimji

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Page 147
________________ (१३९) } ॥ श्रसुरैइयोः सागरोपममधिकम ३३ ॥ सौधर्मादिषु यथाक्रमम् ३४|| साग रोपमे ३५ ॥ अधिके च ॥ ३६ सप्त, सनत्कुमारे ३७ ॥ विशेष त्रिसप्तदशै कादशत्रयोदश पंचदशनिरधिकानि च ३० ॥ श्रारणाच्युतादूर्ध्वमेककेन नव सुयैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थ सिद्धे च ३९ ॥ परापब्योपममधि कं च ४० ॥ सागरोपमे ४१ ॥ श्रधि के ४‍ च ४२ ॥ परतः परतः पूर्वपूर्वानं तरा ४३ || नारकाणां च द्वीतीयाहि पु ४४ || दशवर्षसहस्त्राणि प्रथमायाम् ४५ ॥ जवनेषु च ४६ ॥ व्यं

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