Book Title: Jain Stotra Ratnamala
Author(s): Kothari Kasalchand Nimji
Publisher: Kothari Kasalchand Nimji
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(१३५) निकेोपसंयोग निसर्गादच्चितुर्द्वित्रि मे दाः परं १०॥ तत्प्रदोषनिन्दवमात्सया तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावर गयोः ११॥ दुःखशोकतापाक्रंदनबध परिवेदनान्यात्म परोजयस्यान्य सठे यस्प १२|| नूनम्रत्यनुकंपादानसराग संयमादियोगक्षांतिशौचमिति तद्वेद्य स्य १३ || केवलित संघधर्मदेवावर्ण वादो दर्शन मोदस्य १४ ॥ कपायोद यानीव्रात्म परिणामचारित्र मोहस्य १५ || वहारंजपत्रित्वं च न क स्यायुषः १६॥ माया तैर्यग्यो ॥ व्यारंभपरिग्रहत्वं

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