Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha Author(s): Publisher: Ajramar Jain Vidyashala View full book textPage 4
________________ ३ आ ग्रंथमां त्रण थोकडा वधु उमेरी ३५ थोकडा करेला छे. तथा घटतो थोडो सुधारो पण महाराजश्रीए कर्यो छे. आ ग्रंथने छपाववानी मदद मळवाथी आठे पुस्तको अर्धी कींमते आपेली मुदत सुधी, अने आ ग्रंथ तो पहोंचे त्यां सुधी अर्धी कींमते आपबानो निश्चय कर्यो छे. अफसोसनी बिना एछे के मुफो बबेवार सुधारवा छतां प्रेसनी बेदरकारीने ली काना, मात्र, हस्व दीर्घ अने कोइ कोइ अक्षरो उडी गया छे तेथी तेनुं शुद्धिपत्र लांबु करवुं पडयुं छे. बांचनार ते शुद्धिपत्रथी सुधारीने वांचशे ए विज्ञप्ति छे. प्रकाशक आभार. रु २०० मुनिश्री चुनीलालजी स्वामीनी दीक्षा प्रसंगे एकठा थयेला मांथी मल्या छे. रु १०० लींबडी निवासी मरहूम मास्तर मुळजीभाइ तलकशीभाइना स्मरणार्थे तेमना विधवा बाइ पार्वतीबाई तरफथी मल्या छे. रु १०० लींबडी निवासी शाह ल्हेरचंद फुलचंदनी सुशील पुत्री व्हेन रतनगौरी तरफथी मल्या छे. उपरना चारसो रुपीया मुनिश्री चुनीलालजी स्वामीनी दीक्षानी यादगीरी अ आ पुस्तक ओछी कींमते आपी शकाय ए आशयथी अर्पण करेल छे तेथी ते सर्वनो सप्रेम उपकार मानीए छीए. आ मददने ली आ ग्रंथ सहीत आठ ग्रंथोने अर्धी कींमते आपी शक्या छीए. प्रकाशक आ पुस्तको अनुक्रमणिका छेले (२३४) पाने छे.Page Navigation
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