Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha
Author(s): 
Publisher: Ajramar Jain Vidyashala

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Page 10
________________ श्री सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ए छना अप्रजाप्ता ने प्रजाप्ता एवं १२, तथातेरभेदे जीवः कृष्णलेशी निललेशी, कापुतलेशी, तेजुलेशी, पद्मलेशी, शुकललेशी, ए छना अप्रजाप्ता, ने प्रजाप्ता एवं १२ ने एक अलेशी एवं १३. हवे जीवना १४ भेद कहे छे; सुक्ष्म एकेंद्रियनो अप्रजाप्तो ने प्रजातो, बादर एकेंद्रियना अप्रजातो, ने प्रजातो, बेइंद्रियनो अप्रजातो ने प्रजातो, तेइंद्रियनो अप्रजातो, ने प्रजातो, चउरिद्रियनो अप्रजातो, ने प्रजातो, असंज्ञी पंचेंद्रियना अप्रजातो, ने प्रजातो, संज्ञी पंचेंद्रियनो अप्रजातो, ने प्रजातो. हवे ज्यवहार विस्तार नये करीने पांचसेनेत्रेसठभेद जीवना कहे छे. तेहमां त्रणसेनेत्रण भेद मनुध्यना, एकाअठाणुभेद देवताना, अडतालीस भेद तिर्यचना, चउदभेद नारकीना, एवं ५६३ भेद जीवतत्वनां कह्या. हवे तेहमां मनुष्यना ३०३ भेद कहे छे. ते १५ कर्म भूमिना मनुष्य, ३० अकर्मभूमिना मनुष्य, ५६ अंतर द्विपना मनुष्य, एवं १०१ क्षेत्रना गर्भज मनुष्यना, अप्रजाप्ता, ने प्रजाप्ता, एवं २०२ ने एकसानेएक क्षेत्रना समुर्छिम मनुष्यना अप्रजाप्ता एवं ३०३ भेद मनुष्यना. हवे कर्मभूमि ते केहने कहिये, असी, मशी, कृषी, ए, ३ प्रकारना व्यापारे करी जीवे तेहने कर्मभूमिनां मनुष्य कहिए. ते कर्मभूमिना क्षेत्र केटला छे. ५ भरत, ५ इरवत, ने ५ महाविदेह, एवं १५ ते कर्मभूमि किहां छे एक लाख जोजनना जंबुद्विप छे तेहमां १ भरत, १ इरवत, १ महाविदेह ए ३ क्षेत्र कर्मभूमिनां जंबुद्विपमां छे, तेहने फरतो बे लाख जोजननो लवण समुद्र छे, तेहने फरतो चारलाख जोजनना धातकीखंड द्विप छे, तेहमां २ भरत, २ इरवत, २ महाविदेह छे, तेहने फरतो ४ लाख जोजननो कालोदधि समुद्र छे,

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