Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha Author(s): Publisher: Ajramar Jain Vidyashala View full book textPage 9
________________ नवतत्व. थइबंधाय, तेहने बंधतत्व कहिये. मोक्षतत्व ते सकल आत्माना प्रदेशथि सकल कर्मनुं छुटवं, सकल बंधन मुकाव, सकल कार्यनि सिद्धि थाय, तेहने मोक्षतत्व कहिये, ए नव पदार्थनुं जाणपणुं, तेहने तत्व कहिये, हवे जीवनएक भेद ते, सकल जीवान चैतन्य लक्षण - एक छे. माटे संग्रहनये करि एक भेदे जीव कहिये. तथा प्रकारे पण जीव कहिये. त्रस, थावर, तथा सिद्ध, ने संसारी. तथा त्रणभेदेजीव, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, तथा भवसिद्धिया, अभवसिद्धिया, नोभवसिद्धिया, नोअभव सिद्धिया. तथाच्चारभेदे जीव. नारकी, तियेच, मनुष्य, देवता, तथा चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, केवलदर्शनी. तथा पांच प्रकारे जीव. एकेंद्रिय, वे इंद्रिय, तेइंद्रिय, चारिद्रिय, पंचेद्रिय, तथा सजोगी, मनजोगी, वचनजोगी, कायजोगी, अजोगी. तथा छ प्रकारे जीव, पृथवीकाय, अप्काय, तेउकाय, वाउकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय. तथा सकषायी, कोहकषायी, मानकषायी, मायाकषायी, लोभकषायी, अकषायी. तथा सात प्रकारे जीव. नारकी, तियेच, तिर्यंचणी, मनुष्य, मनुष्यणी, देवता, देवी. तथा आठ प्रकारे जीव. सलेशी, कृष्णलेशी, निललेशी, कापुतलेशी, तेजुलेशी, पद्मलेशी, शुकललेशी, अलेशी. तथा नव प्रकारे जीव, पृथवी, अप, तेउ, वाउ, वनस्पति, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिद्रिय, पंचेंद्रिय. तथा दश भेदे जीव, एकेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइिंद्रय,चउरिद्रय, पंचेंद्रिय, ए ५ ना अप्रजाप्ता ने प्रजाप्ता, एवं १०. तथा इग्यार भेदे जीव एकेंद्रिय, बेइंद्रियद्र, तेइंद्रिय, चउरिद्रिय, नारकी, तिर्यंच, मनुष्य, भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिक. तथा १२ भेदे जीव, पृथवी, अप, तेउ, वाउ, वनस्पति, त्रसकाय,Page Navigation
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