Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha
Author(s): 
Publisher: Ajramar Jain Vidyashala

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Page 13
________________ नवतत्व. कुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, विज्जुकुमार, अग्निकुमार, द्विपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार, थणितकुमार. हवे १५ परमाधामिना नाम कहे छे. अंब, अंबरिस, शाम, सबल, रुद्र, वैरुद्र, काल, महाकाल, अशिपत्र, धनुष्य, कुंभ, वाल, वेतरणी, खरस्वर, महाघोष. सोल वाणव्यंतरना नाम; पिशाच, भूत, जक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरिस, महारग, गंधर्व, आणपत्नी, पाणपनी, इसिवाइ, भूइवाइ कंदिय, महाकंदिय, काहंड, पयंगदेव. दश जंभकाना नाम; आणजंभका, पाणभका, लयणजंभका, शयणभका, वछजंभका, पुष्पजंभका, फलजंभका, बीयजभका, विज्जुजंभका, अवियतजंभका. दश ज्योतिषीना नाम; चंद्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा, ए ५ चल,ते अढि द्विपमा छे. ने ५स्थिर ते अढि द्विषबाहिर छे, एवं १० हवे ३ किल्विपिना नाम;३ पलिया, ३ सागरिया, १३ सागरिया. नवलोकां तिकनां नाम, सारस्वत, आदित्य, विह्नि, वरुण, गईतोया, तोषिया, अव्यावाधा, अगिच्चा, रिठा. हवे बार देवलोकना नाम; १ सुधर्म, २ इशान, ३ सनत्कुमार, ४ माहेंद्र, ५ ब्रह्मलोक, ६लंतक, ७ महाशुक्र, ८ सहसार, ९ आणत, १० प्राणत, ११ आरण, १२ अच्चुय. हवे नव ग्रीवेकना नाम; भद्दे, सुभद्दे, सुजाए, सुमाणसे, प्रियदर्शणे, सुदर्शने, आमाहे, सुपडीबद्धे, जशोधरे. पांच अनुत्तर विमानना नामविजय, विजयंत, जयंत, अपराजित, सर्वार्थसिद्ध, ए ९९ जातना देवता अप्रजाप्ता ने,९९ जातना प्रजाप्ता एवं १९८ भेद देवताना कह्या. हवे तिर्यचना ४८ भेद कहेछे; पृथवी, पाणि, तेउ, वाउ, ए ४ सुक्ष्म, ४ बादर, एवं ८ ए ना अप्रजाप्ता, ने ४ ना प्रजाप्ता, एवं १६ अने वनस्पतिना ३ भेद. सुक्ष्म प्रत्येक ने साधारण ए ३ ना अप्रजाप्ता ने ३ ना प्रजाप्ता ए ६ एवं २२ एकंद्रियना. त्रण विकलेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय,

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