Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha
Author(s): 
Publisher: Ajramar Jain Vidyashala

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Page 12
________________ श्री सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ५ तिवारे पांचमी अंतरद्विपो आवे ते ७०० जोजनना लांबा ने पहोलो छे. तिहांथि ८०० जोजन जाइये तिवारे छठा अंतरद्विपो आवे ते ८०० जोजनना लांबो ने पहोलो छे. तिहांथि ९०० जोजन जाइये तिवारे सातमी अंतरद्विपो आवे ते ९०० जोजनना लांबा ने पहोलो छे. एवं सात चोकुं २८ अंतरदिपा जाणवा. एमज इरवतक्षेत्रनी मर्यादाना करणहार शिखरीनामे पर्वत छे ते चुल हिमवंत शरिखो जाणवो, तिहां पण २८ अंतरद्विपा छे, अठाविश दु ५६ अंतर द्विपा जाणवा, अंतरद्विपाना मनुष्य ते केहने कहिये, हेठे समुद्र छे अने उपर अधर डाढाना द्विपामां रहेनार छे, माटे. अथवा तोफरतु पाणी अने वचमां बेटडा होय तेमां रहेनारा होय तेने अंतर द्विपाना मनुष्य कहिये. हवे १०१ क्षेत्रना समुर्छिम मनुष्य १४ स्थानकमां उपजे छे ते कहे छे. उच्चारेसुवा ते वडिनितमा उपजे, पासवणेमुवा ते लघुनितमां उपजे, खेले सुवा ते बलखामां उपजे, संघाणेसुवा ते लिंटमां उपजे, वंतेसुवा ते वमनमां उपजे, पीतेसुवा ते निलापिला पीतमां उपजे, पुइएमुवा ते परुमां उपजे, सेाणिएसुवा ते रुद्धिरमां उपजे, सुक्कसुवा ते विर्यमां उपजे, सुक्कपागलपरिसाडिएसुवा ते विर्यादिकना पुद्गलसुकाणा ते फरि भिना थाय तेहमां उपजे, विगय जिव कलेवरे सुवा ते मनुष्यना कलेवरमां उपजे, इथि पुरिस संजोगे सुवा ते स्त्री पुरुषना संजोगमां उपजे, नगर निधमणे सुवा ते नगरनी खाळेोमां उपजे, सव्वेसुचेवअसुइठाणेसुवा ते सर्वमनुष्य संबंधिअसुचिस्थानकामां उपजे, एवं १०१ क्षेत्रनासमुर्छिम मनुप्यना अपजाप्ता, एवं सर्व मिली ३०३ भेद मनुष्यना कह्या. हवे देवताना १९८ भेद कहे छे, तेहमां दश भवनपतिना नाम; असुर

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