Book Title: Jain Nyaya Panchashati
Author(s): Vishwanath Mishra, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 88
________________ जैनन्यायपञ्चाशती ____ कोई भी उत्पाद ऐसा नहीं होता, जो स्थिति और व्यय से रहित हो, उनसे संयुक्त न हो। कोई भी व्यय ऐसा नहीं होता, जो स्थिति और उत्पाद से रहित हो उनसे संयुक्त न हो। न्यायप्रकाशिका ____ अस्मिन् जगति कोऽप्युत्पाद एतादृशो न भवति यः स्थित्या व्ययेन च रहितः केवलः स्यात्। तात्पर्यमिदं यत् एतादृशः कोऽप्युत्पादो नास्ति यस्य सत्ता-स्थितिः न भवेत्। तस्य व्ययश्च न स्यात्। यदि उत्पद्य भावा न तिष्ठेयुः ततो व्ययश्च न स्यात् तदा प्रयोजनशून्यः समुत्पादो व्यर्थ एव स्यात्। दृश्यते हि लोके यत् सर्वो हि समुत्पादः सप्रयोजन एव भवति। तेषां प्रयोजनं च स्थितिमन्तरा यत्नसहस्रेणापि भवितुं नार्हति। तस्मादेतदवश्यमेव स्वीकरणीयं यत् उत्पादः केवल एकाकी न भवति किन्तु स्थित्या सहैव भवति। उत्पत्तेरनन्तरं यदि वस्तुनः स्थितिर्न भवेत् तदा विनश्यता भावेन किं प्रयोजनम्? तस्मात् स्थितिव्ययाभ्यां सहैव भवति समुत्पादः कस्यापि वस्तुनः इति स्वीकरणीयमेव ! यथा वस्तुनः उत्पादः स्थितिव्ययसहितो भवति तथैव नाशोऽपिव्ययोऽपि स्थित्या उत्पत्त्या च सहैव भवति। यदि कस्यापि वस्तुनः समुत्पत्तिर्न स्यात् उत्पत्तेरनन्तरं तस्य स्थितिश्च न तदा प्रतियोगिनोऽभावे कस्य व्ययः-विनाशः स्यात्? यथा दुग्धस्य दधिरूपे परिणमनार्थं दुग्धस्य पूर्वकालिकसत्ता अपेक्षते तथैव कस्यापि वस्तुनो व्ययार्थं परिणमनार्थं तस्य वस्तुनः पूर्वकालिकी सत्ता अपेक्षिता भवत्येव। इदमेव तथ्यम् अस्यां कारिकायां व्यक्तीकृतम्। ___इस जगत् मैं किसी भी.वस्तु का उत्पाद ऐसा नहीं होता जो स्थिति और व्यय से रहित केवल हो। इसका तात्पर्य यह है कि ऐसा कोई उत्पाद नहीं है जिसकी सत्ता-स्थिति न हो ओर उसका व्यय न हो। यदि पदार्थ उत्पन्न होकर स्थित न रहें और उनसे व्यय न हो तो प्रयोजनशून्य उत्पाद व्यर्थ ही हो जाएगा। लोक में देखा जाता है कि सभी उत्पाद प्रयोजन सहित ही होते हैं और उनका प्रयोजन स्थिति के बिना हजार प्रयत्न करने पर भी सिद्ध नहीं होता। इसलिए यह अवश्य ही स्वीकार करना चाहिए कि उत्पाद केवल अकेला नहीं होता किन्तु स्थिति के साथ ही होता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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