Book Title: Jain Nyaya Panchashati
Author(s): Vishwanath Mishra, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 125
________________ 108 जैनन्यायपञ्चाशती प्रतिबिम्ब नाम से ख्यात छाया एक अपरिहार्य तत्त्व है। यह बिम्ब के अनुसार होती है। दार्शनिक जगत् में प्रसिद्ध द्रव्यादि सात पदार्थों में छाया कौन पदार्थ है? इस प्रश्न के उत्तर में आचार्य कह रहे हैं कि छाया द्रव्य है, क्योंकि इसमें क्रिया है। इसलिये क्रियावत्वात् छाया द्रव्य है, किन्तु यह कहना इसलिये संगत नहीं है कि केवल क्रियावान् का होना द्रव्यत्व का साधक नहीं है किन्तु क्रिया के साथ गुण की स्थिति भी वहां अपेक्षित होती है। छाया कृष्णवर्ण की होती है यह बात लोकप्रसिद्ध है। इस प्रकार कृष्णवर्ण रूप गुणाश्रयत्वात् तथा गमनचलनादि क्रियाश्रयत्वात् च छाया द्रव्यमिति सुस्थिरम्। गमनकर्ता के साथ जाती हुई छाया को देखकर लोक में कहा जाता है कि छाया जाती है। इस प्रकार प्रत्यक्ष प्रमाण से छाया का द्रव्यत्व सिद्ध है तथापि कतिपय विद्वान् अनुमान से भी छाया का द्रव्यत्व सिद्ध करते हैं। वह इस प्रकार होता है कि छाया द्रव्य है क्योंकि उसमें क्रिया तथा गुण है। गुणक्रिया-श्रयोद्रव्यम्गुण और क्रिया का आश्रय द्रव्य ही होता है। छाया में गुण और क्रिया के रहने के कारण उसका द्रव्यत्व असंदिग्ध है। गुण और क्रियात्व के साथ द्रव्यत्व की अन्वय तथा व्यतिरेक-ये दोनों व्याप्ति सुलभ हैं । संस्कृत व्याख्या में इस बात को विधिवत् स्पष्ट कर दिया गया है। इस प्रसंग में कुछ लोगों का कहना है कि छाया में जिस क्रियावत्व की प्रतीति की बात कही जाती है वह वास्तविक नहीं है, किन्तु वह भ्रमात्मक है। भ्रमात्मक ज्ञान के आधार पर छाया को द्रव्य कहना उचित नहीं है। छाया के द्रव्यवादियों ने इस कथन को मान्यता नहीं दी है। इनका कहना है छाया में जिस क्रियावत्व की प्रतीति होती है वह प्रत्यक्ष ज्ञानजन्य है। ज्ञानजन्य होने के कारण वह प्रमा (यथार्थज्ञान) है, भ्रम नहीं है। यहां यह बात विचारणीय है कि ज्ञानजन्य जो कुछ होता है वह यदि प्रमा ही है तो शुक्ति में रजत ज्ञान को प्रमा क्यों न माना जाय? इसके उत्तर में कहा जाता है कि शुक्ति में रजत अथवा रज्जु में सर्प के स्थल से छाया का स्थल भिन्न है। वहां तो भ्रम का अधिष्ठान रज्जु है और अधिष्ठेय सर्प है। जब वास्तविक ज्ञान होता है तब वहां कहा जाता है-'नायं सर्पः'। इस प्रकार का वाद्य ज्ञान यहां नहीं होता है। यहां रज्जु की भांति कोई भ्रमाधिष्ठान नहीं है। यहां तो केवल गमन क्रिया कतृत्व छाया में है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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