Book Title: Jain Nyaya Panchashati
Author(s): Vishwanath Mishra, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 126
________________ जैनन्यायपञ्चाशती 109 सम्प्रति गुरोः प्रभावातिशयं प्रस्तौतिअब गुरु के अतिशय प्रभाव को प्रस्तुत कर रहे हैं वाच्योऽप्यवाच्यो ननु गौरवत्वाद्, गुरोः प्रभावस्तमिहावलम्ब्य। अमुं प्रयासं फलितात्मभासं, करोति सद्यो मुनिनथमल्लः॥५१॥ गुरु का प्रभाव अपनी गरिमा के कारण वाच्य-वर्णनीय होने पर भी अवाच्य- . अवर्णनीय होता है। उसका अवलम्बन लेकर मुनि नथमल (आचार्य महाप्रज्ञ) इस 'जैनन्यायपञ्चाशती' की रचना के इस प्रयास को स्वयं की कल्पना से शीघ्र सफल कर रहे हैं। न्यायप्रकाशिका गुरोमहिमा खलु महीयान्। गरीयान् खलु गुरोः प्रभावः। स हि नितान्तनिर्मलचेतसा गुरुनिष्ठेन शिष्येण वाच्योऽपि प्रभावातिशयस्य वाच्यत्वेऽपि स्वकीय-वैशिष्टयात् वस्तुतोऽवाच्च एव। एतादृशं गुरुप्रभावमवलम्ब्य मुनि नथमलः (आचार्य महाप्रज्ञः) जैनन्यायपञ्चाशत्याः'रचनाप्रयासं आत्मभासंस्वकीयकल्पनां सद्यः सफलं करोति। गुरु की महिमा अपूर्व है। गुरु का प्रभाव गुरुत्तर होता है। नितान्त निर्मल चित्त वाले गुरुनिष्ठ शिष्य के द्वारा वे वाच्य होने पर भी अपने अतिविशिष्ट प्रभाव के कारण वे वस्तुतः अवाच्य ही अवर्णणीय ही होता है। ऐसे गुरु के प्रभाव का अवलम्बन लेकर ग्रन्थकारं मुंनि नथमल (आचार्य महाप्रज्ञ) 'जैनन्याय पञ्चाशती' की रचना के प्रयास को स्वयं ही कल्पना से शीघ्र सफल कर रहे हैं। आचार्य महाप्रज्ञ इति नामान्तरेण ख्यातेन मुनिना नथमलेन प्रणीता जैन न्याय पञ्चाशतीति पुस्तकं विश्वनाथमिश्रकृत न्यायप्रकाशिका व्याख्यया हिन्द्यां संस्कृते च समलंकृता पूर्णतामविन्दत्। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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