Book Title: Gyansara
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Jain SMP Sangh

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Page 6
________________ ॥ समर्पणम् ॥ येषां कृपाकणमत्मादृशां संसाराऽपारपारावारे तरणीयते तेषां परमपूज्यां पूज्यपादानां समयज्ञानां शान्तमूर्तीनां श्रीमद्विजयविज्ञानसूरीश्वराणां करकमलयोः सादरम् : उपाध्यायश्रीयशोविजयविरचिती ज्ञानसारी प्रन्थो भद्रङ्करोदयाख्यव्याख्याविभूषितः सुसम्पादितःवत्पादपद्मेन्दिन्दिरेण सूरसूरकल्प श्री यशोभद्रसूरिशिष्येण पन्यासश्री शुभङ्करविजयगणिना समर्प्यते ।

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