Book Title: Gyansara
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Jain SMP Sangh

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Page 12
________________ पृष्ठसङ्ख्या पक्तिः । संज्ञात्यागा अशुद्धम् संज्ञाया वचश्व मेति गाः न धैयः '२४१ २४२ मेऽपि गान श्रेयः चनम दुराराध्य बम २४४ २४५ दुर्गति २४६ दुराध्य दूर्गति सर्वश्चक्षु धिस्त्ये . राणी २५१ सर्वतश्रक्षु धिरस्त्ये राणां तद्व २५३ जस्वा क्षपं. २५४ पदार्थ क्ष्या प्रा वव णवाद् क्षम पदार्थज्ञानं क्ष्याऽप्रा तदाज्ञा स्वैरः २५५ तदा २५६ पदयो पादयो २५७ २५९ शाख २६४ २६९ यस्था शक स्वाचा यस्था नात्म धिग सम्बधी ब्रह्म नामात्म घिग सम्बन्धी ब्राह्म दृष्ठे .. २९२ २९९ ३०८

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