Book Title: Gyansara
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Jain SMP Sangh
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शुद्धम्
पृष्ठसया • पडक्तिः।
पद
१६३
तो
पुद्गला
पुअल
"
फलं मुत्कर्ष मन्द तस्य लं वेति वेदयन्ती
:
मुर्ख मन्द तस्व लवेति वेदयती गमयोः तया गवा दूधप
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CC
गयोः . तथा गर्वा
द्वयाप
धी या
धीत्या
स्वान्द्र
२०१
तत्वदृष्टे
२०४ २१७
ध्यति ।
स्वाद तत्वष्ट शति लक्का णीयदीनां चित
णीयादीनां चिह्न
२१९ २२२ २२५
१७
२३०
दुर्ग बुख
बुद्धय
२३२
निदीर्घ
२३३
निर्दी दारुणा

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