Book Title: Bindu me Sindhu Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 5
________________ संपादकीय आज के इस व्यस्ततम युग में साहित्यसिन्धु में गोता लगाने का समय किसी के पास नहीं है। यही कारण है कि बड़े-बड़े ग्रन्थों का स्वाध्याय बहुत कम हो गया है। विषय की गंभीरता, प्रस्तुतीकरण की जटिलता और भाषा की समस्या से भी जिनागम के स्वाध्याय में बाधा पहुँची है। यद्यपि डॉ. भारिल्ल का साहित्य सरल भाषा और सुलभ शैली में लिखा गया है । इसीकारण पढ़ा भी सर्वाधिक जाता है; तथापि उसने भी एक विशाल सिन्धु का रूप ले लिया है। लगभग छह हजार पृष्ठों में भी नहीं समानेवाले उनके साहित्य में जिनागम से संबंधित लगभग सभी विषयों का समावेश हुआ है और उसमें अध्यात्म भी तिल में तेल की भांति समाहित है । यद्यपि उनका साहित्य सर्वाधिक पढ़ा जानेवाला साहित्य है; तथापि ऐसे भी लोग हैं, जो समय की कमी के कारण उसके अध्ययन से वंचित हैं । उनको ध्यान में रखकर ही हमने इस कृति में उनके साहित्यसिन्धु को समाने का प्रयास किया है। इन छोटे-छोटे बिन्दुओं में वे सभी मुख्य बातें आ गई हैं, जो उनके विशाल साहित्यसिन्धु के गर्भ में समाहित हैं। उनके साहित्य का दोहन ही सूक्तिसुधा है और यह उसका नवनीत है। इसमें जो कुछ भी है, गहराई से देखने पर वह सब सूक्तिसुधा में मिल जायगा । ब्र. यशपाल जैन -Page Navigation
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