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४६. वस्तु नहीं, मात्र दृष्टि बदलनी है। ५०. फेरफार करने के भार से बोझिल दृष्टि में यह सामर्थ्य
नहीं कि वह स्वभाव की ओर देख सके। । ५१. जो आस्थाएँ हृदय में गहरी पैठ जाती हैं, वे सहज
समाप्त नहीं होती। ५२. हमें मरण नहीं, जीवन सुधारना है। ५३. दूसरों से कटने का मौन सबसे सशक्त साधन है। ५४. मिथ्या रुचि और राग निर्णय को प्रभावित करते हैं। ५५. नित्यता की नियामक अनन्तता ही है। ५६. अशुद्धता शाश्वत नहीं है। ५७. जबतक स्वयं परखने की दृष्टि न हो, उधार की बुद्धि से
कुछ लाभ नहीं होता। ५८. दुःखों से, विकारों से, बंधनों से मुक्त होना ही मोक्ष है।
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