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३७. पात्रता ही पवित्रता की जननी है। ३८. धार्मिक आदर्श भी ऐसे होने चाहिए, जिनका संबंध
जीवन की वास्तविकताओं से हो। ३६. वास्तविक सेवा तो स्व और पर को आत्महित में लगाना है। ४०. मुक्ति के मार्ग का उपदेश ही हितोपदेश है। ४१. आत्मानुभव की प्रेरणा देना ही सच्चा पाण्डित्य है। ४२. अखण्ड आत्मा की उपलब्धि ही जीवन की सार्थकता है। ४३. दृष्टि के सम्पूर्णतः निर्भार हुए बिना अन्तर प्रवेश सम्भव नहीं। ४४. आध्यात्मिक धारा त्यागमय धारा है। ४५. नाशाग्रदृष्टि आत्मदर्शन और अप्रमाद की प्रतीक है। ४६. श्रावकधर्म योगपक्ष और भोगपक्ष का अस्थाई समझौता है। ४७. हथियार सुरक्षा के साधन नहीं, मौत के ही सौदागर हैं। ४८. आक्रमण प्रत्याक्रमण को जन्म देता है।