Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
( इसे दूधमें डाल कर थोड़ी देर बाद निकाल | लेकर बारीक चूर्ण बनावें । तदनन्तर ३ भाग यह लेना चाहिये और वह दूध पीना चाहिये ।) चूर्ण और २ भाग शुद्ध पारद ले कर दोनेांको (६०७४) रसभस्मविधिः (३) अच्छी तरह खरल करें और फिर उसे कपड़मिट्टी (र. चि. म. । स्तबक १)
की हुई एक मज़बूत हाण्डीमें रख कर उसके
( औषधके ) चारों ओर मिट्टीके ठीकरे (खपर) नवप्रसूतासुरभिजरायुमिश्रितो ध्रुवम् ।
जमा दें। अब इसके ऊपर एक दूसरी हाण्डी अन्धमूषागतो ध्मातो म्रियते पारदस्तराम् ॥
उल्टी रख कर दोनेांकी सन्धिको अच्छी तरह बन्द शुद्ध पारदको नवप्रसूता गौके जरायुके साथ |
गाक जरायुक साथ | कर दें और उसे चूल्हे पर चढ़ा कर नीचे १६ घोट कर अन्धमूषामें बन्द करके उसे अंगारों पर
पहर निरन्तर अग्नि जलावें । तत्पश्चात् हाण्डीके रख कर ध्मानेसे पारद अवश्य मर जाता है।
स्वांग शीतल होने पर दोनेांकी सन्धिको खोलकर (६०७५) रसभस्मविधिः (४) ऊपरकी हाण्डीमें लगे हुवे रसको छुड़ा कर सुर
(र. चि. म. । स्तबक १.) क्षित रक्खें । इष्टिका गैरिकं वल्मीमृत्तिका सैन्धवं समम् । यह रस कपूरके समान उज्ज्वल श्वेत रंगका भागत्रयमिदं श्लक्ष्णं रसो भागद्वयो द्वयम् ॥ होता है । सम्पर्य चैकतः कृत्वा गाढं तं मर्दितं रसम् । यह रस अत्यन्त बलकारक और आयुहण्डिकायां ततः क्षिप्त्वा पार्वे पार्श्वे च खर्प- वर्द्धक है । तथा इसके सेवनसे अनेक रोग नष्ट
रान् ॥ होते हैं। अन्यां च हण्डिकां दत्त्वा तदा सन्धिनिरोधनम् |
(६०७६) रसभस्मविधिः (५) चुलि कायास्तदा दद्यादुपरिष्टाच हण्डिकाम् ॥ | यामषोडशपर्यन्तमग्निं कुर्यादहनिशम् ।। (र. चि. म. । स्तबक १) अन्तरूध्य रसं तस्माल्लग्नं शीतं समुद्धरेत् ॥ निम्बूरसेन सम्मिप मीनाक्षीरससंयुतम् । कपरपुलिकाकारमुज्ज्वलं दृष्टिसौख्यदम् ।। पारदं खत्यके कृत्वा सौभाग्यं च तदर्धिकम् ॥ ग्रन्थिलं मृदुलं सौम्यं भक्ष्यमाणं निरामयम् ॥ मर्दयेत्सर्वमेकत्र दिनपञ्चावधिस्तथा । पुष्ट्यारोग्यपदं तीक्ष्णं कामनीयं मुखावहम् । माषप्रमाणा वटिकाः काव्याः शुष्कतां गताः॥ बलपदं विशेषेण दीर्घायुःकारकं परम् ॥ काष्ठभाजनमध्यस्था मापचू मैन वेष्टिताः । इदमेकमहो भस्म गृह्यतां राजवल्लभम् । इष्टीचूर्णेन संलेप्य पुनः शोच्या खरातवे ।। हन्तिसमियाञ्चैतबद्भद्रं तत्पकाशित ॥ म्यामध्ये विनिक्षिप्य पुनरङ्गारकेषु च ।
ईटका चूर्ग, गेह मिट्टी, बत्मीक मृत्तिका मां वटीयुतां क्षिप्सा घम्यमाना शनैः शनैः॥ (बमीकी पिट्टी ) और सेंधा नमक समान भाग अनेन विधिना मूतो ध्मातो भस्मत्वमाप्नुयात्।
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