Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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उरःक्षत
चतुर्थों भागः
(१३) उरःक्षताधिकारः
रस-प्रकरणम्
कषाय-प्रकरणम्. ५९०० रोहिषादि काथः उरःक्षत सम्बन्धी रक्त
ष्ठीवन
६०८५ रसराजः
उरःक्षत नाशक, काम
चूर्ण-प्रकरणम् ६६३६ लाक्षादि चूर्णम् उरक्षित, रक्तवमन
वर्द्धक
(१४) कर्णरोगाधिकारः
कपाय-प्रकरणम्
६७८१ वरुणादि तैलम् पूतिकर्ण रोग ५८५९ रसोनरस:- ___ कर्ण पीड़ा पर ६७८३ वंशावलेखादि,, कर्णशूल
स्नुही रसश्च सरल योग ६८०५ विषगर्भ तैलम् दुःसाध्य कर्ण शूलको ६२०५ लशुनादिस्वरसः कर्णशूल
शीघ्र नष्ट करता है।
६८१९ वृहत्किङ्किणी पूतिकर्ण, कर्णस्राव, घृत-प्रकरणम्
तैलम् कर्णनाद, कानकी ५७९१ यष्टिमधुकादि पित्तज कर्णशूल
खुजली, कर्ण शोथ,
भयंकर वधिरता घृतम्
लेप-प्रकरणम्
५४१५ मुशल्यादि लेपः कर्णपाली वर्द्धक - तैलप्रकरणम् ५८०३ यष्टयादि तैलम् कर्णशूल, दाह
रस-प्रकरणम् ६२७८ लघुक्षार , बधिरता, कर्णशूल, ७०७९ विषयोगः कर्णस्राव, शूल और कर्णकृमि कर्णस्राव
कण्डूको शीघ्र नष्ट ६२८४ लशुनाद्यं ,, वधिरता
करता है। ६२९१ लाङ्गल्याद्य, कर्णस्राव, कर्णकृमि,
मिश्र-प्रकरणम् और कानके दुष्ट नाड़ी ५७११ मूत्र योगः कर्णशूल ब्राको शीघ्र नष्ट ६१७८ रसाञ्जनादि स्रावयुक्त पुराना करता है।
योगः पूति-कर्ण रोग
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