Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम
बडी मेरी दो बहनें उर्मिल व निर्मला हैं। हम चार भाई व तीन वहनें हैं। हमारा परिवार एक प्रतिष्ठत परिवार है। इसका व्यापार क्षेत्र में अपना प्रसिद्ध स्थान है ।
मेरे बाबा दीर्घायु थे। वह दानी व परउपकारी थे। उन्होंने अपना एक मात्र घर भी एक भाई को दान कर दिया । उन का चरित्र उनका इतना निर्मल था कि उन्होंने समस्त जीवन शुद्ध शाकाहार को ध्यान में रखा। उन्होंने अनेकों ग्रामीणों का मांस व शराब का परित्याग करवाया ।
शराब से नफरत :
वे शराब से बेहद नफरत करते थे । इसी कारण से उनकी संतान इस बुराई से बची रही । “एक बार उनको चोट लगी तो लोगों ने कहा जख्म पर शराब लगाओ। जख्म ठीक हो जाएगा ।" पर बावा जी वृद्धावस्था में तकलीफ झेलते रहे, पर उन्होंने शराव का प्रयोग नहीं किया । यह थी उनकी अपने सिद्धांतों के प्रति आस्था । वह प्रमाणिक व नैतिक जीवन जीने में विश्वास रखते थे ।
इन्हीं वातों का वर्णन मैने एक वार ज्ञानी जैल सिंह जी (भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति) से किया। तो वह प्रसन्न हुए । स्वः साध्वी स्वर्ण कांता जी की प्रेरणा से हमारी समिति ने उनकी स्मृति में एक अवार्ड की स्थापना की। जिस का नाम अहिंसा व मानवता के अवतार भगवान महावीर जी के नाम पर रखा गया। इस एवार्ड का नाम था 'इंटरनैशनल महावीर जैन शाकाहार अवार्ड" |
मेरा बचपन :
मेरा बचपन आम बच्चों की तरह था । इस में कुछ भी असमान्य नहीं था । मेरा पालन पोषण मेरे माता-पिता ने वहुत ही धार्मिक वातावरण में किया । मुझ पर उन्होंने
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