Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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के. आर. चन्द्र
(क) 'जीयमेयं का वर्णन
(२) गर्भ का अपहरण (क) एक अनुकम्पक देव द्वारा अपहरण
[ 'जीयमेयं' शब्द कल्पसूत्र से
लिया गया ]। (ख) दोक्षा लेते समय प्रतिज्ञा पूरी होने का
उल्लेख मात्र [ माता-पिता के जीवन काल में दीक्षा नहीं लेने की यह बात कल्पसूत्र से ली गयी है ] ।
(ख) शकेन्द्र एवं हरिणेगमेसि देव को इस घटना
के साथ जोड़ना [ यह आचारांग के बाद की सामग्री मालूम होती है ।
(ग) शक्रेन्द्र द्वारा स्तुति। (घ) देवताओं द्वारा सिद्धार्थ के घर बहुमूल्य
निधान लाना (स्वतन्त्र)। (ङ) अनुकम्पावश गर्भ में हलन-चलन बन्द
करना। (च) माता-पिता के जीवन काल में दीक्षा नहीं
लेने का अभिग्रह धारण करना ।
(३) नामकरण (क) दशाह का उल्लेख मात्र ।
(ख) पांच धात्रियों द्वारा संवर्धन । (ग) परिपक्व ज्ञान वाले होना।
(क) नामकरण के अवसर पर दशाह मनाने का
लम्बा वर्णन । (ख) उस समय नगरी को सजाना। (ग) परिपक्व ज्ञान वाले होने की यह बात स्वप्न
फल बताते समय स्वप्न-वर्णन में कह दी गयी है।
(घ) आसक्ति रहित पंचेन्द्रिय भोगों का सेवन
संयम-पूर्वक करना। (ङ) माता-पिता को पापित्यी कहना
(स्वतन्त्र )। (च) एक संवत्सर तक दान देना । (छ) दीक्षा लेने के अभिप्राय वाले होना। (ज) इसके बाद देवों द्वारा महिमा । (४) प्रव्रज्या (क) एक शाटक ग्रहण करके प्रव्रज्या
धारण करना।
(क) गुरुजनों की आज्ञा लेकर दीक्षा ग्रहण करना
(स्वतन्त्र)।
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