Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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डा० सुदर्शन लाल जैन
चौबीसों तीर्थङ्करों के समय में होने वाले १०-१० अन्तकृत अनगारों का वर्णन है जिन्होंने दारुण उपसर्गों को सहनकर मुक्ति प्राप्त की। भगवान् महावीर के समय के १० अन्तकृत हैं-नमि, मतङ्ग, सोमिल, रामपुत्र, सुदर्शन, यमलीक, वलीक, किष्कम्बल, पाल और अम्बष्ठपुत्र ।
___ अन्तकृतों की दशा अन्तकृद्दशा है, अतः इसमें अर्हत्, आचार्य और सिद्ध होने वालों की विधि का वर्णन है।
२. धवला में'-२३२८००० पदों के द्वारा इसमें प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थ में नाना प्रकार के दारुण उपसर्गों को सहनकर, प्रातिहार्यों ( अतिशय-विशेषों) को प्राप्तकर निर्वाण को प्राप्त हुए १०-१० अन्तकृतों का वर्णन है । तत्त्वार्थभाष्य में कहा है-'संसारस्यान्तःकृतो येस्तेऽन्तकृतः" ( जिन्होंने संसार का अन्त कर दिया है, वे अन्तकृत हैं। वर्धमान तीर्थङ्कर के तीर्थ में होने वाले १० अन्तकृत हैं-नमि, मतङ्ग, सोमिल, रामपुत्र, सुदर्शन, यमलीक, वलीक, किष्कबिल, पालम्ब और अष्टपुत्र । इसी प्रकार ऋषभदेव आदि तीर्थङ्करों के तीर्थ में दूसरे १०-१० अन्तकृत हुए हैं । इन सबकी दशा का इसमें वर्णन हैं।
३. जयधवला में इसमें प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थ में चार प्रकार के दारुण उपसर्गों को सहन कर और प्रातिहार्यों को प्राप्तकर निर्वाण को प्राप्त हुए सुदर्शन आदि १०-१० साधुओं का वर्णन है।
४. अङ्गप्रज्ञप्ति में-अन्तकृत में २३२८००० पद हैं, जिनमें प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थ के १०-१० अन्तकृतों का वर्णन है। वर्धमान तीर्थङ्कर के तीर्थ के १० अन्तकृतों के नाम धवलावत् हैमातंग, रामपुत्र, सोमिल, यमलीक, किष्कंबी, सुदर्शन, वलोक, नमि, पाल और अष्ट (मूल में "अलंबद्ध" पद का प्रयोग है जिसकी संस्कृत छाया पालम्बष्ट की है)। (ग) वर्तमान रूप
अन्तकृत शब्द का अर्थ है-संसार का अन्त करने वाले । इसका उपोद्घात ज्ञाताधर्मकथावत् है। इसमें ८ वर्ग हैं
प्रथम वर्ग-इसमें गौतम, समुद्र, सागर, गम्भीर, थिमिअ, अयल, कंपिल्ल, अक्षोभ, पसेणई और विष्णु इन अन्धकवृष्णि के १० पुत्रों से सम्बन्धित १० अध्ययन हैं। द्वितीय वर्ग-इसमें १० मुनियों के १० अध्ययन हैं। तृतीय वर्ग-इसमें १३ मुनियों के १३ अध्ययन हैं। चतुर्थ वर्ग-इसमें जालि आदि १० मुनियों के १० अध्ययन हैं । पंचम वर्ग-इसमें पद्मावती आदि १० अन्तकृत स्त्रियों के नामवाले १० अध्ययन हैं । षष्ठ वर्ग- इसमें १६ अध्ययन हैं। सप्तम वर्ग-इसमें १३ अध्ययन हैं. जिनमें अन्तकृत स्त्रियों (साध्वियों) की कथायें हैं। अष्टम वर्ग-इसमें राजा श्रेणिक की आदि १० अन्तकृत स्त्रियों (साध्वियों) से सम्बन्धित १० अध्ययन हैं।
इन आठ वर्गों को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। जैसे (१) प्रथम पाँच वर्ग कृष्ण और वासुदेव से सम्बन्धित व्यक्तियों की कथा से सम्बन्धित हैं, (२) षष्ठ और सप्तम वर्ग भगवान्
१. धवला १.१.२, पृ० १०३-१०४ । २. जयधवला गाथा, १, पृ० ११८ । ३. अङ्गप्रज्ञप्ति गाथा ४८-५१, पृ० २६७.
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