Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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डा० सुदर्शन लाल जैन हैं--१. आनन्द, २. कामदेव, ३. चूलनीपिता, ४. सुरादेव, ५. चुल्लशतक, ६. कुंडकोलिक,
७. सद्दलपुत्र, ८. महाशतक, ९. नन्दिनीपिता और १०. लेतिआपिता । (ख) दिगम्बर ग्रन्थों में
१. तत्त्वार्थवार्तिक में'-श्रावकधर्म का कथन है।
२. धवला में-उपासकाध्ययन में ११७०००० पद हैं जिनमें दर्शनिक, व्रतिक, सामायिकी, प्रीषधोपवासी, सचित्तविरत, रात्रिभुक्तिविरत, ब्रह्मचारी, आरम्भविरत, परिग्रहविरत, अनुमतिविरत
और उद्दिष्टविरत इन ११ प्रकार के उपासकों के (श्रावकों के ) लक्षण, उनके व्रतधारण करने की विधि तथा आचरण का वर्णन है ।
___३. जयधवला में --दर्शनिक आदि ११ प्रकार के उपासकों के ग्यारह प्रकार के धर्म का वर्णन उपासकाध्ययन में है ।
४. अङ्गप्रज्ञप्ति में --उपासकाध्ययन में ११७००० पद हैं जिनमें दर्शनिक आदि ११ प्रकार के देशविरतों (श्रावकों) के श्रद्धा, दान, पूजा, संघसेवा, व्रत, शीलादि का कथन है। (ग) वर्तमान रूप
इसमें उपासकों के आचारादि का वर्णन है । उपोद्घात ज्ञाताधर्मकथावत् है। आनन्द आदि जिन १० उपासकों के नाम स्थानाङ्ग और विधिमार्गप्रपा में हैं उनकी ही कथायें इसमें हैं। सभी कथायें एक जैसी हैं उनमें केवल नामादि का अन्तर है । (घ) तुलनात्मक विवरण
यह एकमात्र ऐसा अङ्गग्रन्थ है जिसमें उपासकों के आचार आदि का वर्णन किया गया है, ऐसा दिग० और श्वे० दोनों के उल्लेखों से प्रमाणित होता है । 'दशा' शब्द १० संख्या का बोधक है। इस तरह यह अङ्ग-ग्रन्थ स्वनामानुरूप है। धवला और जयधवला में उपासकों की ११ प्रतिमाओं का भी उल्लेख है परन्तु तत्त्वार्थवार्तिक में ऐसा उल्लेख नहीं है। समवायाङ्ग और नन्दी में 'प्रतिमा' शब्द तो मिलता है परन्तु प्रतिमा के दर्शनिक आदि नाम नहीं हैं। शीलवत आदि शब्दों का भी प्रयोग समवायाङ्ग और नन्दी में मिलता है। समवायाङ्ग और नन्दो में आनन्द आदि १० उपासकों के नामों का उल्लेख तो नहीं है परन्तु १० अध्ययन संख्या से १० उपासकों की पुष्टि होती है। दिग० इस विषय में चुप हैं। वर्तमान आगम में स्थानाङ्गोक्त आनन्द आदि १० उपासकों की ही कथायें हैं।
पदसंख्या से सम्बन्धित तीन प्रकार के उल्लेख हैं-(१) समवायाङ्ग में संख्यात लाख, (२) नन्दी में संख्यात सहस्र और (३) धवला में ११ लाख ७० हजार । १. तत्त्वार्थ० १.२० पृ० ७३ ।
धवला १.१.१ पृ० १०३ । ३. जयधवला गाथा १ पृ० ११८ । ४. अंगप्रज्ञप्ति गाथा ४५-४७ पृ० २६६ ।
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