Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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सहयोग सर्वत्र आवश्यक प्रीत की रीत क्या है ? सुख की खोज जाकी रही भावना जैसी संगत कीजे साधु की कम खाए, सुख पाए भावना भवनाशिनी कषायमुक्तिः किलमुक्तिरेव मन की महिमा सुख का साधन-धर्म ऊंघे मत बटोही! गुण पूजा करिए
१६४ १६६
२०४
तृतीय-खण्ड
धर्म और दर्शन
२२६
२३६
श्री विजय मुनि शास्त्री, श्री पुष्कर मुनि जी डा. सागरमल जैन प्रो. दलसुखभाई मालवणिया । डा. कृपाशंकर व्यास
२४८
२६५
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भारतीय दर्शन के सामान्य सिद्धान्त
जैनदर्शन में अजीव तत्त्व निश्चय और व्यवहारः किसका आश्रयलें?
___ शून्यवाद और स्याद्वाद नयवाद : सिद्धान्त और व्यवहार
की तुला पर ज्ञानवाद : एक परिशीलन स्याद्वाद सिद्धान्त : एक अनुशीलम
जैन रहस्यवाद बनाम अध्यात्मवाद जैन-दर्शन का कबीर-साहित्य पर प्रभाव
धर्म का सार्वभौम रूप पंचास्तिकाय में 'पुद्गल'
धर्म का वैज्ञानिक विवेचन कर्म-सिद्धान्तः भाग्य-निर्माण की कला नयवादः सिद्धान्त और व्यवहार की
तुला पर अपरिग्रह और समाजवादःएक तुलना
०
श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री २७७ श्री देवकुमार जैन श्रीमती पुष्पलता जैन एम. ए. ३३० विद्यावती जैन एम. ए.
३४२ प्रवर्तक श्री विनय ऋषिजी
३५४ डा. हुकुमचन्द पार्श्वनाथ संगवे, डा. वीरेन्द्रसिंह
३६८ श्री कन्हैयालाल लोढ़ा, एम. ए. ३७८ श्री श्रीचन्द चोरड़िया, न्यायतीर्थ ३६२
श्री सौभाग्यमल जैन, एडवोकेट
४०० ।
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