Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. १ उ.९ सू. ५ कालास्यवेषिकपुत्रप्रश्नोत्तरनिरूपणम् ३३१ प्रत्येमि विश्वसिमि रोवे, रुचिविषयतया अभिलषामि, 'एवमेयं से जहेयं तुम्मे वदह' एवमेतत्, अथ यथा एतद्द्वस्तु यूयं वदथ, यूयं भवन्तः यथा आत्मपरतया एतद् वस्तु सामायिकादि पदार्थान् वदध प्रतिपादयन्ति एवमेत्र तथैव एतत् सामायिकादि वस्तु विद्यते इत्याशयः । ' तरणं ते थेरा भगवंतो कालासवे सियपुत्तं अणगारं एवं वयासी' ततः तदनन्तरं ते स्थविरा: भगवन्तः कालास्य वेषिकपुत्रम् अनगारं एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादिषुः प्रोचुः ' सहाहि अज्जो ! पत्तयाहि अज्जो ! रोएहि अज्जो ! से जहेयं अम्हे वदामो ' हे आर्य ! श्रद्धेहि, आत्मपरतया प्रतिपादितेषु सामायिकादिपदार्थेषु श्रद्धां कुरु हे आर्य !
पादित सामायिकादि पदों के आत्मरूप अर्थ पर पूर्णविश्वास करता हूं ( पत्तियामि) उसे अपनी प्रीति या प्रतीति का स्थान बनाता हूं (रोएमि) और अपनी रुचि का उसे निवासस्थान बनाता हूं । ( एवमेयं से जहेयं तुम्भे वदह ) हे भगवन् ! आप जिस प्रकार से आत्मार्थपरक सामायिक आदि पदों का कथन किया है वास्तव में उनका वही अर्थ है । इस प्रकार से कालास्वेषिकपुत्र अनगार के हार्दिक वचनों को सुनकर उन स्थविर भगवंतों ने उनसे कहा कि आर्य ! जैसा हम कहते हैं (सहाहि ) उस पर तुम पूर्णरूप से विश्वास करो ( पत्तयाहि अज्जो) उसे अच्छी तरह से हे आर्य ! तुम अपनी प्रतीतिकोटि में उतारो (रोएहि अज्झो) उस पर बहुत ही गहराई के साथ सोच विचार कर अपनी रुचि जमाओ तात्पर्य कहने का यह है कि जिस प्रकार से इन सामायिक आदि पदों का अर्थ हमने आत्मरूप अर्थ में प्रतिपादित किया है वह वैसा ही है
મારફત પ્રતિપાદિત સામાયિક વગેરે પદોના માત્મરૂપ અથ પર હુ` મારી स. पूर्ण श्रद्धा व्यक्त ४३ छ ' पत्तियामि" मेनी प्रतीति ३ छ, “रोएमि" અને તેમાં મારી રુચિ જાહેર કરૂ છું. एवमेयं से जहेय तुम्भे बदह " હે ભગવન્તા ! આપે જે રીતે આત્મા સૂચક આ સામાયિક વગેરે પદોનું પ્રતિપાદન કર્યું” છે એ પ્રતિપાદન જ એ પદોના વાસ્તવિક અથ ખતાવનારૂ છે. આપ્રકારના કાલાસ્યવેષિકપુત્ર અણુગારનાં હાર્દિક વચને સાંભળીને તે स्थविर लगव तोमे तेभने छु ! हे मार्य ! सभेने अधुं तेभां “सहहाहि या संपूर्ण रीते श्रद्धा राम " पत्तयाहि अज्जो " हे मार्य ! साथ तेजी सारी रीते प्रतीति । " रोएहि अज्जो " ते विषे अडो विचार उरीने तेभां રુચિ જમાવા. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે અમે જે પ્રકારે સામાયિક વગેર પદોના અર્થનુ આત્મરૂપ અમાં પ્રતિપાદન કર્યુ છે, તે અથ જ સાચો છે
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
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