Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसत्र 'पमाए ' प्रभया-दिव्यया प्रभया-विमानदीप्त्या 'छायाए' छायया-दिव्यया छायया शरीरशोभया " दिव्वाए अच्चीए" दिव्येन अर्चिषा शरीरस्थरत्नादि समुद्भूत तेजसा, 'दिव्वेणं तेएणं' दिव्येन तेजसा = शरीरसम्बन्धिकान्त्या "दिवाए लेस्साए" दिव्यया लेश्यया देहसौंन्दर्येण, इति संग्रहः ॥ 'दश दिसाओ' दशदिशः दिविदिगू•धोरूपाः दशापिदिशः "उज्जोवेमाणे" उधोतयन् प्रकाशयन् 'पभासेमाणे' प्रभासमानः देदीप्यमानः 'जाव पडिरूवे' यावत् प्रतिरूपः-द्रष्टार द्रष्टार प्रतिरूपं नानारूपं यस्य स तथा, अत्र यावत्पदेन "पासाईए दरिसणिज्जे अमिरूवे " इति संग्रहः, तत्र 'पासाइए' प्रासादीयः दर्शकानां चित्त प्रसादजनकः ' दरिसणिज्जे ' दर्शनीयः यदर्शने चक्षुः श्रमो न जायते । ' अभिरूवे ' अभिरूप मनोज्ञरूपः इति ॥
" सेणं तत्थ अन्ने देवे अन्नेसिं देवाणं देवीओ अमिज़ुजिय अभिमुंजिय परियारे" स खलु तत्र अन्यान देवान् अन्येषां देवानां देवीरभियुज्याभियुज्य परिचारयति “सेणं" स खलु निग्रंथ जीवदेवः " तत्थ ' तत्र-देवलोके "अन्ने देवे" अन्यान् देवान् आत्मव्यतिरिक्तान् देवान् “ अन्नेसिं देवाणं देवीओ" शरीर में पहिने हुए रत्नादि की दिव्यकान्ति से, तथा शरीर संबंधी कांति से एव देह के सौन्दर्य से ( दसदिसाओ ) दश दिशाओं कोचार पूर्वादिदिशाओं को, तथा चार पूर्वादिदिशाओं के चार कोनों को एवं ऊपर और नीचे को-( उज्जोवेमाणे ) उद्योतित करता हुआ (पभासे माणे) प्रकाशित करता हुआ, (जाव पडिरूवे) यावत्-वह देखने वालों के चित्त में प्रसन्नता का जनक होता है, देखने वालोंकी आखें उसे देखते २ कभी अघाती नहीं हैं वह मनोज्ञ रूप वाला होता है और प्रतिरूप देखनेवालों के लिये क्षण २ में नवीन २ रूप से युक्त हुआ ज्ञात होता है । ( से ण तत्व अन्ने देवे अन्नेसि देवाणं देवीओ अभिजुजिय, अभिजुजिय परियारेइ) इस प्रकारके देवलोकों में से किसी एक देवलोक શરીર પહેરેલાં રત્નાદિની દિવ્ય કાન્તિથી, તથા શરીરની કાંતિ અને દેહ सौथी (दस दिसाओ) से हिशामाने (पूर्वाह २ हिश, मनि माहि यार मूला, तथा ५२नी मने नीयनी हिशासी) ( उज्जोवेमाणे ) शित ४२ता (पमासेमाणे) प्रमायुत ४२ता, (जाव पडिरूवे) नारन चित्तने પ્રસન્ન કરતા–તેમનું રૂપ એટલું બધું મને હોય છે કે તેમને જોનારની આંખે તેમનું રૂપ જોતાં તૂટેજ અનુભવતી નથી. તેઓ જેનારની નજરે ક્ષણે सो नवीन ३५ धा२५ ४२ता डाय मे साणे छ. ( से णं तत्थ अन्ने देवे अन्नेसिं देवाण देवीओ अभिजुजिय अभिजुजिय परियारेइ) परात समृद्धि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨