Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

View full book text
Previous | Next

Page 205
________________ १.देशक ७. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. १८५ ४. उत्पत्यधिकाराद् इदमाहः - 'जीवे णं' इत्यादि. 'गमं वक्कममाणे' त्ति गर्भ व्युत्क्रामन् गर्भे उत्पद्यमानं इत्यर्थः 'दव्विंदियाई' ति निर्वृत्ति-उपकरणंलक्षणानि, तानि हि इन्द्रियपर्याप्तौ सत्यां भविष्यन्ति इत्यनिन्द्रिय उत्पद्यते, 'भाविंदियाई' ति लब्धि-उपयोगलक्षणानि, तानि च संसारिणः सर्वावस्थाभावीनि इति 'ससरीर' चि सह शरीरेण इति सशरीरी, इन्समासान्तभावात् 'असरीरि' ति शरीरवान् शरीरी, तनिषेधाद् अशरीरी. 'धक्षम' चि व्युत्क्रामति उत्पयते इत्यर्थः 'तप्पटमयाए' ति तस्य गर्भन्युत्क्रमणस्य प्रथमता रात्प्रथमता राया, 'किं' इति प्राकृतत्वात् कम् 'भाउओय' ति मातुरोजो जनन्या आर्तवं शोणितम् इत्यर्थः 'पिउनु' ति पितुः शुक्रम्, इह यदिति शेषः, 'तं' ति आहारम् इति योग:. 'तदुभयसंसिद्ध' ति तयोरुभयं तदुभयम्, तच्च तत् संश्लिष्टं च, संसृष्टं वा संसर्गवत् तदुभयसंश्लिष्टम्, तदुभयसंसृष्टं वा. 'जं से' त्ति या तस्य गर्भसत्त्वस्य माता, 'रसविगइओ' त्ति रसरूपा विकृतीर्दुग्धाद्या रसविकारास्ताः, 'तदेगदेसेणं' ति तासां रसविकृतीनाम् एकदेशस्तदेकदेशः, तेन सह ओज आहारयति इति 'उच्चारे इ व' त्ति उच्चारो विष्ठा, इतिरुपप्रदर्शने, वा विकल्पे. सेतो निष्ठीवनम् 'सिंघाण' ति नासिका लेष्मा 'केस-मंसु-रोम - नहचाए' शि इस मश्रूणि कूर्वकेशाः रोमाणि कक्षादिकेशाः 'जी' इत्यादि. 'सम्बओ' चि सर्वागना 'अभिक्खणं'ति पुनः पुनः. 'आहत' ति कदाचिद् आहारयति कदाचिद् न आहारयति तथास्वभावस्वात् यतश्च सर्पत आहारपति इत्यादि ततो मुखेन न प्रभुः कावलिकमाहारमाहर्तुम् इति भावः अथ कथं सर्पत आहारपति ! इत्याह'भाउजीवरसहरणी' इत्यादि. रसो हियते आदीयते यया सा रसहरणी - नाभिनालम् - इत्यर्थः मातृजीवस्य रसहरणी मातृजीवरसहरणी. फिम् इत्याह- 'पुजीवरसरणी' पुत्रस्य रसोपादाने कारणत्वात् कथमेवम् इत्याह-मातृजीवप्रतिवद्धा सती सा यतः 'पुतीपुसि पुत्रजीवं स्पृष्टवती इह च प्रतिबद्धता गाढसंबन्धः, तदंशत्वात् स्पृष्टता च संबन्धमात्रम्, अतदंशत्वात्. अथवा मातृजीवरसहरणी, पुत्रजीवरसहरणी च इति द्वे नाड्यौ स्तः तयोश्च आद्या मातृजीवप्रतिबद्धा पुत्रजीवस्पृष्टा इति. 'तम्हे' त्ति यस्माद् एवं तस्माद् मातृजीवप्रतिबद्धया रसहरण्या पुत्रजीवस्पर्शनाद् आहारयति. 'अवरा वि य' त्ति पुत्रजीवरसहरण्यपि च पुत्रजीवप्रतिबद्धा सती मातृजीवं स्पृष्टवती 'तम्ह' त्ति यस्माद् एवं तस्मात् चिनोति शरीरम् उक्तं च तन्त्राऽन्तरे - " पुत्रस्य नाभौ मातुश्च हृदि नाडी निबध्यते, ययाऽसौ पुष्टिमाप्नोति केदार इव कुल्यया" इति . ४. उत्पत्तिनो अधिकार चालतो होवाथी हवे आ सूत्र कहे छेः - [ 'जीवे णं' इत्यादि . ] [ 'गब्भं वक्कममाणे' त्ति ] गर्भमां उपजतो. [ 'दविदियाई' गर्भं. " १. श्रीतन्दुल वैचारिक प्रकीर्णक्रमां ( तंदुलवेआलिअपइण्णग- पयन्ना - मां) गर्भ संबंधे तथा शरीरसंबंधे सविस्तर हकीकत आ रीते छे: "दो आहोरत्तसए पुणे सागरमम्मि जीवो उड़ मोरतम प. एए अहोरता निधमा जीवस्त गन्भवासाम्य हीगाहिया इस उपधायवसेण जाति xxx सो इवीए नामिाि सिरादुगं पुप्फलादिगार तस्स म हिडा जोगी महोमुद्दा संठिया कोसा. तस्स य हिट्ठा चूअस मंजरी तारिसा उ मंसस्स, ते रिउकाले फुडिआ सोणिअलवया विमुंचति. कोसायार जोणि संपत्ता सुखनीसिया हथा, तदभावाद तुम्मा दिया विधिदेहिं बारस चैव मुहुत्ता उवरिं विद्धंसं गच्छइ सा उ, जीवाणं परिसंखा लक्ख पुहुत्तं च उक्कोसं. पणपण्णा य परेणं जोणी पमिलायए महिलिआणं, पण सतरीय परओ पाएण पुमं भवे अबीओ. वाससयाउयमेअं परेण जा होइ पुम्बकोडीओ तस्स भ मिलाया सच्चाउयचीसमा यस्तुका व इथी सच भारता, पिठसंखसडु बारसवासाओ गम्मस्स. दाहिणच्छी पुरिसर होइ बामाए इत्वीभाभी मरेनपुंसे लिरिए अब रिसाई इमोजी अम्मागे माऊ पिठ तदुभयसंसिद्धं कलु किव्विसं तप्पढमयाए आहारं आहरित्ता गन्भत्ताए बकमइ. गाथा-सत्ताहं कललं होइ सत्ताई होइ अब्बुअं, अब्बुआ जाय पेसी पेसीओ विघणं भवे. तो पढमे मासे करिणं पलं जायइ, बीए मासे पेसी संजायए घणा, तएइ मासे माउए डोहलं जणइ, चउत्थे मासे "जीव गर्भनी अंदर बसेंने साडा सत्योतेर २७७॥ दिवस अर्थात् नव मास उपर सादा सात दिवस सुधी रहे छे. हम का एटला दिवसो सुची तो जीव गर्नमा रहेवो न जोइए, हने जो कदाच कोई जीन उपर कहेड दिनसो करतां बधारे के ओखा दिवस सुधी रहे तो एक समज के गनेपघात - अडचण - थयो छे. चिरंजीव शिष्य ! स्त्रीनी नाभि ( इंटी ) नीचे फुलना नाळना जेवा घाटवाळी बे नाडीओ होय छे, अने तेनी नीचे नीचा सुखवाली भने फुलना डोडा जेनी योनि हो, रोनी नीचे भवानी मां जरना जेवा घाटवाळी मांसनी मांजर होय छे. ते मांजर ऋतुसमये फूटे छे अने तेमांथी लोहीना बिंदु झरे छे. हवे ते झरतां लोहीना बिंदुओमांथी जेटला बिंदुओ ( पुरुषना ) वीर्यथी मिश्रित थइ ते डोडाना ज़ेवा आकारवाजी योनियां जाम के टला बिंदुओ जीवनी उत्पत्तिने योग्य छे एम जिनेश्वरी के बार मुहूर्त पछी ते योनि (अर्थाद योनिम आनेता पूर्वोक्त प्रकारमा कोहीमा बिदुओम रहेगी जीवनी उत्पतिनी सोग्यता) नाश पागे छे भने तेनी अंदर बबारेमा वधारे येथी नवलाख जीवो उपजे छे. पंचावन वर्ष पछी स्त्रीनी योनि म्लान थाय छे अर्थात् ते गर्भोत्पत्तिने माटे योग्य नथी रहेती. तथा पंचोत्तेर वर्ष घणा भागे निर्बीज थइ जाय छे उपरनी वात सो वर्षनी आवरदावाळा मनुष्यो माटे जाणवानी छे अने तेथी उपरनी भवरदावाळा - पूर्वकोटि निम्बरोध, छट्टे मासे पिसंसोधि उदधिषे सतने माझे सत सिरासवाई, पंच पेशीशपाई, न धमणी, नमन रोमानि पंच पेसीसयाई, नव धमणी, नवनउई चेव रोमकूवसय सहस्साई निवत्तेइ विणा केस - समसुणा; सह केस - समंसुणा अजुट्ठाओ रोमकूवकोडीओ निव्वत्ते, अट्टमे मासे वित्तिकप्पो हवइ x x x x गाथा तस्स फलबिंटसरिसा उप्पलनालोबमा हवइ नाभी, रसहरणी जणणीए सयाइ मामी परिषद्धा नाभीए तीए ममी को आईआई अवंती उपाए सीए गन्भो विवड्ढेइ जाव जाओ ति Xxxx X आउसो ! तओ नवमे मासे, तीए वा, पडुपन्ने वा अणागए वा चउन्हं माया अन्नयरं पयाइ तं जहा इत्थि वा इत्थीरूवेणं, पुरिसं वा पुरिसरूवेणं, नपुं वागणं वा विक अर्थ बहु जो माऊन अंगाई पीछे, पंचमे माये पंच पिडित पाविपार्य, सिरो जोवनारा मनुष्यो माटे विशेष छे. ते आछे देवी जातनी श्रीओनी योगियारेनुं आयुष्य याकी रहे के बारे मसिनेमा अयोग्य बाय के तथा देवी जातना पुरषो ज्यारे येभोना आयुष्यनो वीशमो भाग बाकी रहे त्यारे निर्वाज बने छे. ऋतुकाळने प्राप्त बीच भाग बाकी रहे सारे निर्वान बनेका प्राप्त भएकी स्त्रीनी योनिमां बार मुहूर्त जेटला समये बेथी नव लाख जीवो उत्पन्न थाय छे. तथा वधारेमा वधारे एक जीवने बसंथी नवसे सुधी जनक (पिता) होइ शके छे अने वधारेमां बधारे जीव गर्भावासमां बार वरस सुधी रहे थे. श्रीनी जमणी कुछ पुरुष (पुत्र) उपनाम से दादी कुठे श्री (पुत्री) उत्पन्न थाय छे अने डायुं तथा जमणं ए बन्नेनी बच्चे नपुंसक पैदा थाय छे. तिर्यंचोमां वधारेमां वधारे जीव गर्भावासमा आठ वर्ष सुधी रहे छे. ज्यारे माता अने पितानो संयोग थाय छे त्यारे पहेले बखते जीव मातानुं सोही अने पितानुं नीचे से बनेषी मिति थल पुगा उपनेते हाथी " २४ भ० सू० For Private & Personal Use Only Jain Education International - . www.jainelibrary.org/

Loading...

Page Navigation
1 ... 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372