Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नथी एटले तेओ गमे तेम वर्ते हे तेने कोइ अटकावतु' नथी, तो सई विघ्ननो नाश या माटे मंगळ मनोइये, दिसा आचा०18 मध्य अने अन्त एका प्रण भेदे हो, तेमान ' यमे आउ संतेणं भगत्रया एव मक्खाय' आ भगवान वचन होवाथी प्रथम मंगळ 15/ सूत्रम छे, अथवा श्रुत एटले श्रुतज्ञान ते नंदीमूत्रमा गणातुं होबाथी मंगळ छे, ए मंगळ विना विध्ने इच्छित शाखना अर्थने पार पहोंच| बानुं कारण छे, मध्य मंगळ लोकसार अध्ययनना पांचमा उद्देशानुं सूव छे. 'सेजदाके विहए परि पुण्णे चिटइ समंसि भोम्मे उवसंतरए सारक्खमाणे' अहीं हद (कुंड)ना गुणो वडे आचार्योना गुणोनु कीर्तन छे अने आचार्यों पांच परमेष्ठीमा होवाथी भगळ छे. आ भणेला इच्छितशास्त्रार्थने स्थिर करवा माटे छे. छेल्लु मंगळ नवमा अध्ययनमा छेल्लु मूत्र के अभि निबुडे अाई आवक हाए भगवं समियासी' अहिं अभिनित ग्रहण 'संसार महातरु कंद ' ने छेदीने खात्रीधी ध्यान करवान होवाथी मंगळ छ । ( दीक्षा पाळनारे एम चोकस मानवू के हवे मने संसार भ्रमण नहि थाय) आ छेक्दन मंगळ शिष्य अने मशिष्य तेनो परिवार | द कायम रहेवा माटे छे ( के जे सूत्रो भणीने स्वपरने मतिबोधे छे) अध्ययनमा मूत्रो मंगळपणे वतावादी अध्ययनोनु मंगळ पणुं जाणी ले तेथी विशेष कहेता नथी अथवा आ आखु शानुज ज्ञानरुप होवाथी मंगळ छे भने ज्ञानथी सकाम निर्जरा थापळे. | निर्जरामा तेनी चोकस खात्री छे. लख्युछे के जे अन्नाणी कम्मं, खवेइ बहुयाहि वास कोडीहि तनाणी तिहिं गुत्तो, खवेइ उस्सा समित्तेणं ॥१॥ कोदो वर्षे अमानी जे कर्म खपावे ते ज्ञानी अने प्रण गुप्तिनो धरनारो श्वासोश्वास मात्रमा खपावे छे, मंगळ शन्दनु निरुक्त दी SARACETRIA For Private and Personal Use Only

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