Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २ ॥ नाखी छ, तभा अमादिनिधन (सर्वदापणाने) ने पामेल के अने अनुपम जिनेश्वरोप उपदेश भापता पहेलांज जेने नमस्कार आचाको छे ते तीर्थ जयवन्तु वो के. आचारशाम्वं सुविनिश्चितं था, जगाद वीरो जगते हिताययः । तथैव किश्चिद्गदतः स एवरे, पुनातु धीमान् विनयार्पिता गिरः॥ जेवीरीते श्रीवीर भगवाने जगतना हितने माटे सारीरी निश्रय करेला आनारशासने वर्णव्यु से पीनरीते ते श्रीवुद्धिपूर्ण वीर। भगवान पोते कइक चोलनार एवानी आ मारी विनयथी र्पण करेली वाणी सेने पवित्र करो. शत्रपरिज्ञा विवरण, मतिबहगहनं च गन्यहस्तिलम् । तस्मात्सुख बोधार्थ गृहाम्यह मजसा सारम् । गन्धहस्ति आचार्य करेलु 'शस्त्र परिज्ञानु" विवरण बहु गहेनत लीया छतां पण न पनी शकाय से होवाथी रोनो जलदी ने भोडी महेनते पोध भाग (मम जीशकाय) तेटला माटे तेनो सार मात्र ग्रहण करुई. 31 अहि निश्रये राग द्वेप मोह निगेरेथी हारेला सर्व मंगो जे." - पने मन संबन्धी अनेक अति कडवा दलोना सपा थी पीडाला छे, ते दूर करवाने माटे हे - मेळ तेपणे पस्न फावो जोहए, ते यत्न विशिष्ट विवेकविता -ग, अने ते श्रेष्ठ निवेक जे आप्न पुरु ( न्य ज्ञान विगेरे)नो समूह पास करेला होय, तेपना एले अने ते आत पुरुष र पोक्षय काँगी गाय, ते दोष रहित जिनेश्वरजछे For Private and Personal Use Only

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