Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ARC FARN सूत्रम् आचा. ६. एनो अवयवार्थ नियुक्तिकारज कहे छे. M आयारो आचालो आगाला आगारोय आसासो। आयारिसोअंगंति य आइण्णाऽजाइ आमोक्खा ७ ॥९॥ जे वर्तनमा मृकाय ते आचार जाणवो ए नाम विगेरे चार निक्षेपाये जाणवो, नामस्थापना सुगम छोडीने द्रव्य निक्षेपमा ज्ञE शरीर, भव्य शरीर तथा बेनाथी जुदो (व्यतिरिक्त) द्रव्याचार आ गाथा बडे जाणवो. 'णामणधोयणवामण सिक्खावण सुकरणाविरोहोणि। दवाणि जाणि लोए दवाया बियाणाहि । नावन, धावन, वासन, शिक्षण, मुकरण, जे अविरोधी द्रव्यो छे ते लोकोमा द्रव्याचार जाणवो दशवकालीकमूत्र वीजा अध्ययनमां जुओ (पेट भरवाने माटे आ लोकमां जे कला शिखाय छे ते द्रव्याचार जाणवो) भावाचार चे प्रकारे छे. १ लौकिक २ लोकोत्तर तेमां लौकिक ते जैन शिवायना धर्मकृत्यो छे जे अन्यदर्शनी ओ पंचरात्रि विमेरेनो करे छे ते जाणको अने लोकोत्तर Mते ज्ञानदर्शन विगेरेनो पांच प्रकारे जाणवो, मां ज्ञानाचार आठ प्रकारे छे. काले विणए बहुमाणे उवहाणे तहा अणिण्हवणे । वंजणअस्थतदुमये, अट्टविहो णाणमायारो।। काळमां, विनयथी, बहुमानपूर्वक, तपश्चर्यानी साथे, भणनार गुरुनो गुण न भूलता मूत्र अर्थ अने ते बन्ने शुद्ध भणे ते आठ दपकारनो ज्ञानभाचार छे, हवे दर्शनाचार आठ प्रकारनो छे ते बतावे छे. MCir AK CAREite For Private and Personal Use Only

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