Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 18 ) जैन मंदिर में ही कबूतरों के लिये धान्य डालते हैं, इससे मन्दिर में कबूतरों की बीटें अधिक होने से आशातना होती और वह उसकी सुंदरता में आघात पहोंचाती है / इस जिनालय में मूलनायक श्रीमुनिसुव्रतस्वामी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है, जो गाँव से आधकोश के फासले पर आये हुए ' मेर' गाँव से लाकर यहाँ विराजमान की गई है। कहा जाता है कि मोटा-गाम के मन्दिर की ऋषभमूर्ति और मेर-मांडवाडा की मुनिसुव्रत मूर्ति इन दोनों की अञ्जनशलाका एक साथ और एकही लग्नमें हुई है और इनको राजा संप्रतिने भरवाई हैं। इस गांव के महाजन मेरगाँव से आकर यहाँ वसे हैं, इसीसे इसका नाम 'मेरमांडवाडा' रखा गया है, ऐसा यहाँ के वासिन्दों का कहना है / गाँव में एक सामान्य धर्मशाला और एक छोटा उपासरा है / उपाश्रय में एक विवेकशून्य पतित यति रहता है, जो सभ्यता से रहित है। 4 आमलारी. यहाँ ओशवाल जैनों के अन्दाजन 20 घर हैं। गाँव के लगते ही बाह्य-भाग में एक शिखरबद्ध जिनालय है, जिसमें मूलनायक श्रीपार्श्वनाथ की सर्वाङ्गसुन्दर एक हाथ वडी श्वेतवर्ण प्रतिमा विराजमान है / यहाँ पूजा का प्रबन्ध प्रशंसा जनक नहीं है।