Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 191 ) अरिहा की पूजा, कर्म खपीजा / पूजन से पर्म पद, पाय रह्यो री // मेरे० // 6 // राजेन्द्र आणा, धारे जो शाणा / वाचक यतीन्द्र, समझाय रह्यो री // मेरे० // 7 // जेतपुरमंडन-श्रीवीरजिन-स्तवनम् / देशी-मिल पीवो वैद्य का प्याला, गावत आज वधाई, नगर में गावत आज वधाई // टेर॥ देश पूर्व नगरी अति सुंदर, क्षत्रियकुंड सुहाई / ऋषभ वंश श्रीज्ञातज कुल में, काश्यप गोत्र गवाई न०१ श्रीसिद्धारथ राजा सुहंकर, राणी विदेहा कहाई। त्रिशला राणी नाम अपर जस, गोत्र वाशिष्ठ सुहाई न० 2 चैत्रशुक्ल त्रयोदशी के दिन, मध्य रात जब थाई / चन्द्रयोग शुभ शुभ ग्रह मलीयां,शुभ वेला त्रिशला जाई न०३ छप्पन दिगू कुमरी मिलकर आवे, सूती कर्म कर जाई। चौसठ सुरपति सुरगिरि ऊपर, जनमत जिन ले जाई न०४ जन्म सनातर विधि से करके, फिर घर को ले आई। नन्दीश्वर जा आठ दिनों का, महोत्सव करत अठाई न०५ प्रातःकाल सिद्धारथ कुल में, मंगलाचार फेलाई। शतसहस्रऽ लाख प्रजा को, देवत राजा वधाई न०६