Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir **** E ९सके उद्देशा // 843 // C4 वलक्वणवंजणगुणोववेयं उत्समबलवीरियसत्तजुत्तं विण्णाणवियक्खणं ससोहग्गगुणसमुस्मियं अभिजायमहशिवमं विविवाहिरोगरहियं निरुवहयउदत्तलहूं पंचिंदियपडुपढमजोब्वत्थं अणेगउत्तमगुणेहिं संजुत्तं तं अणु प्रतिः होहि ताच जाव जाया! नियगमरीररूवसोहग्गजोवणगुणे, तओ पच्छा अणुभूयनियगमरीररूवसोह८४३॥ ग्गजोवणगुणे अम्हेहिं कालगएहिं समाणेहिं परिणयवये वड्डियकुलवंसतंतुकमि निरक्यक्खे समणस्स भग वओ महावीरस्स अंतिणं मुंडे भरित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वड हिसि,तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-तहावि णं तं अम्मताओ! जन्नं तुझे मम एवं वदह-इमं च ण ते जाया सरीरगं तं चेव जाव पब्वइहिसि. एवं खलु अम्मताओ! माणुस्सगं मरीरं दुक्खाययणं विविहवाहिसयसंनिकेत अट्टियकट्टियं छिरा| पहारजालओणद्धसंपिणद्धं मत्तियभंड व दुब्बलं असुइसंकिलिट्ठ अणिढवियसब्यकालसठप्पियं जराकुणिमजजरघरं व सडणपडणविद्वंसणधम्मं पुदि वा पच्छा वा अवस्मविप्पजहियव्वं भविस्सइ, से केस णं जाणति ? अ|म्मताओ! के पुचि तं चेव जाव पव्वहत्तए। त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारने तेना माता पिताए आ प्रमाणे कयु के-'हे पुत्र ! आ तरुं शरीर उत्तम रूप, लक्षण, व्यंजन (मस, तल बगेरे) अने गुणोथी युक्त छे, उत्तम बल, वीर्य अने सत्वसहित छे, विज्ञानमा विचक्षण छे, सौभाग्य गुणथी उम्मत छे, कुलीन छे, अत्यन्त समर्थ छे, अनेक प्रकारना व्याधि अने रोगथी रहित छ, निरुपहत. उदात्त, अने मनोहर छे, पटु (चतुर) एवी | * पांच इन्द्रियोथी युक्त अने उगती युवावस्थाने प्राप्त थयेलं छे, अने ए शिवाय बीजा अनेक उत्तम गुणोथी भरपूर थे. माटे हे पुत्र। For Private and Personal Use Only

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