Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
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________________ Shri Mahavela Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande तके उद्देश // 847 // बहु हिरन्ने य सुवन्ने य कंसे यदूसे य विउलधणकणगजाव संतसारसावएज्ज अलाहि जाव आसत्तमाओकुलवंसाओ व्याख्या- पकामं दाउं पकामं भोत्तु पकामं परिभाएउं तं अणुहोहिताव जाया! विउले माणुस्सा इड्डिसकारसमुदए, तओ प्राप्ति पच्छा अणुहयकल्लाणे वड्डियकुलतंतु जाव पव्वइहिसि / तएणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं बयासीM८४७॥ हैतहाचि णं तं अम्मताओ! जन्नं तुज्झे ममं एवं बदह-इमं च ते जाया! अजगपजगजावपब्वहहिसि, एवं खलु अम्मताओ। हिरन्ने य सुबन्ने य जाव साधएजे अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए मच्चुसाहिए दायसाहिए एवं अग्गिसामने जाव दाहयसामन्ने अधुवे अणितिए असासए पुखि वा पच्छा वा अवस्सविप्पजहियग्वे भविस्सह, से केस णं जाणइ तं चेव जाव पब्वइत्तए / त्यारपछी ते जमालि नामे क्षत्रियकुमारने तेना माता-पिताए आ प्रमाणे कांके 'हे पुत्र ! आ अर्या (पितामह), पर्या (प्रपि8 तामह) अने पिताना पर्या-(प्रपितामह-) थकी आवेलु घणुं हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, वन, विपुल धन, कनक यावत् सारभूत द्रव्य | विद्यमान छे, अने ते तारे सात पेढी सुधी पुष्कळ दान देवा भोगववाने अने वहेंचवा माटे पूरतुं . माटे हे पुत्र! मनुष्यसंबन्धी विपुल ऋद्धि अने सन्मानने भोगव, अने त्यारपछी सुखनो अनुभव करी, अने कुलवंशने वधारी यावत् तुं दीक्षा लेजे.' त्यारवाद जमालि नामे क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे का के–'हे माता-पिता! तमे जे ए प्रमाणे कयुके, 'हे पुत्र ! आ हिरण्यादि द्रव्य तारा पितामाह अने प्रपितामहथी यावत् आवेलुं छे, इत्यादि यावत् तुं दीक्षा लेजे. ए ठीक छे, पण हे माता-पिता!ए प्रमाणे खरेखर ते हिरण्य, सुवर्ण, यावत् सर्व सारभूत द्रव्य अभिने साधारण छे, चोरने साधारण छ, राजाने साधारण छे, मृत्युने साधारण For Private and Personal Use Only

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