Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04 Author(s): Sudharmaswami, Publisher: View full book textPage 6
________________ Shri Mahaww Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie 9 शतके व्याख्याप्राप्ति // 841 // उद्देशा // 8415 थ. ते लावण्यशून्य, प्रभारहित अने शोभाविनानि थइ गइ. तेना आभूषणो ढीलां थइ गयो, अने तेथी तेना निर्मल बलयो पडी गयां अने मांगीने चूर्ण थइ गया. तेनु उत्तरीय वस्त्र शरीर उपरथी सरी मयु, अने मूर्छाबडे तेनुं चैतन्य नष्ट थयु होवाथी ते भारे शरीरवाळी थइ गई. तेनो सुकुमाल केशपाश विखराइ गयो. कुहाडीना पाथी दाएली चंपकलतानी पेठे अने उत्सव पूरो थता इन्द्रध्वजदंडनी जेम तेनां संधिबंधनो शिथिल थइ गयां, अने ते फरसबंधी उपर सर्व अंगोबडे 'धस्' दइने नीचे पडी गइ. त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी माताना शरीरने (दासीवडे) व्याकुलचित्ते त्वराधी ढळाता सोनाना कलशनामुखथीनीकळेली शीतल अने निर्मल जलधागना सिंचनवडे स्वस्थ कयु, अने ते उत्क्षेपक (वांसना बनेला),तालवृत (ताडना पांदडाना बनेला) पंखा अने वींजणाना | जलबिन्दुसहित पवनवडे अंत:पुरना माणसोथी आश्वासनने प्राप्त थइ. रोती, आक्रंदन करती, शोक करती अने विलाप करती ते जमालि क्षत्रियकुमरनी माता एप्रमाणे कहेवा लागी-'हे जात ! तुं अमारे इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज्ञ, मन गमतो, आधारभूत, विश्वा४ासपात्र, संमत, बहुमत, अनुमत, आभरणनी पेटी जेवो, रत्नस्वरूप, रत्नना जेवो, जीवितना उत्सव समान अने हदयने आनंदजनक। एमज पुत्र छो. वळी उंबरानापुष्पनी पेठे तारा नाम- श्रवण पण दुर्लभ छे, तो तारुं दर्शन दुर्लभ होय एमां शुं कहे ? माटे हे पुत्र ! खरेखर अमे तारो एक क्षण पण वियोग इच्छता ना. तेथी हे पुत्र! ज्यां सुधी अमे जीवीए छीए त्यांसुधी तुं रहे. अने अमे कालगत थया पछी वृद्धावस्थामा कुलवंशतन्तुनी वृद्धि करीने निरपेक्ष एवो तुं श्रमण भगवंत महावीरनी पासे दीक्षा ग्रहण करी गृहवासनो त्याग करी अनगारिकपणाने स्वीकारजे.' तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं बयासी-तहावि णं तं अम्मताओ! जपणं तुझे मम For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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