Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande एवं वदह तुमंसि णं जाया! अम्हं एगे पुत्ते इढे कते तं चैव जाव पब्वइहिसि, एवं खलु अम्मताओ ! माणुस्सए व्याख्या- भवे अणेगजाइजरामरणरोगसारीरमाणसपकामदुक्खवेयणवसणसतोवद्दवाभिभूए अधुए अणितिए असासए 9 शतके प्रदाप्तिः संझम्भरागमरिसे जलवुन्बुदसमाणे कुसग्गजलविंदुसन्निभे सुविणगर्दसणोवमे विज्जुलयाचंचले अणिच्चे सडणप उद्देशक // 842 // डणविद्धसणधम्मे पुन्धि वा पच्छा वा अवस्सविप्पजहियब्वे भविस्सइ, से केस णं जाणइ अम्मताओ! के पुचि // 842 // गमणयाए ?, के पच्छा गमणयाए ?, तं इच्छामि णं अम्मताओ! तुझे हिं अम्भणुनाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पब्बइत्तए। त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कयु के-'हे माता-पिता! हमणां मने जे तमे ए प्रमाणे कषु के-हे पुत्र! तुं अमारे इष्ट तथा कांत एक पुत्र छो-इत्यादि यावत् अमारा कालगत थया पछी तुं प्रवज्या लेजे." पण हे माता -पिता! ए प्रमाणे मरेखर आ मनुष्यभव अनेक जन्म, जरा, मरण अने रोगरूप शारीर अने मानसिक दुःखोनी अत्यन्त वेदनाथी अने सेंकडो व्यसनोथी पीडित, अध्रुव, अनित्य, अने अशाश्वत छे, तेम संध्याना रंग जेवो, पाणीना परपोटा जेवो, डाभनी अणी उपर रहेला जलबिन्दु जेवो, खमदर्शनना समान, विजळीनी पेठे चंचळ अने अनित्य 2. सड, पडवू अने नाश पामयो ए तेनो धर्म 2. पहेला के पछी तेनो अवश्य त्याग करवानो छे हे माता-पिता ! ते कोण जाणे हे के-कोण पूर्वे जशे, अने कोण पछी जशे | INIमाटे हे माता-पिता ! हुं तमारी अनुमतिथी श्रमण भमवंत महावीरनी पासे यावत् प्रव्रज्या ग्रहण करवाने इच्छु छु. तए णं तं जमालिं वत्तियकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-इमं च ते जाया! सरीरगं पविसिहरू-ठा 4646 For Private and Personal Use Only

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