Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir व्याख्याप्राप्तिः // 848 // 9 शतके उदेश ICPCH छे, दायाद (भायात) ने साधारण छे, अनिने सामान्य छे, यावद् दायादने सामान्य के. बळी ते अध्रुव, अनित्य, अने अशाश्वत छे. 6 पहेला के पछी ते अवश्य कोडवानुं छे, तो कोण जाणे छे के पहेला कोण जशे अने पछी कोण जशे ? इत्यादि बाबद ई प्रवज्या | लेवाने इच्छु डूं.' तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मताओ जाहे नो संचाएन्ति विसयाणुलोमाहिं बहहिं आघवणादि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विनवणाहि य आघवेत्तए दा पन्नवेत्तए वासन्न वेत्तए वा विन्नवेत्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभयुब्वेयणकराहिं पन्नवणाहिं पनवेमाषा एवं बयासी-एवं खलु जाया ! निगंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवले जहा आवस्सए जाव सब्वदुक्खाणमंतं करेंति अहीव एगंतदिट्टीए खुरो इव एगंतधाराए लोहमया जवा चावेयब्वा बालुयाकवले इव निस्साए गंगा वा महानदी पडिसोयममणयाए महासमुद्दे वा भुवाहिं दुत्तरो तिक्खं कमियध्वं गरुयं लंबेयब्यं असिधारगं वतं चरियवं, नो स्वल्लु कप्पड़ जाया! समणाण निग्गंथाणं आहाकम्मिएत्ति वा उद्देसिएइ वा मिस्सजाएड वा अज्झोयरएइ वा पूइएइ वा कीएड वा पामिच्चेइ वा अच्छेन्जेइ बा अणिसट्टेद वा अभिहडेइ वा कंतारभत्तह वा दुम्भिवभत्तइ वा गिलाणभत्तइ वा बद्दलियाभत्तेइ वा पाहुण. गभत्तइ वा सेजायरपिंडेइ वा रायपिंडेइ वा मूलभोयणेइ वा कंदभोयणेइ वा फलभोयणेइ वा वीयभोयणेइ वा हरियभोयणेइ वा भुक्षए वा पायए बा, तुम च णं जाया! मुहसमुचिए, णो चेव णं दुहसमुचिते, नालं सीयं नालं उहं नालं खुहा नालं पिपासा नालं चोरा नालं वाला नालं दसा नालं मसया नालं वाइयपित्तियसेंभियसन्नि For Private and Personal use only

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