Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (१८) रथोद्धता यंत्र रान्नरलगाः क्रमादमी, विश्रमो भवति वाजितुर्ययोः । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तामवेत कविता- लता - फलस्वादि- कोविद मतां रथोद्धताम् ॥ २१ ॥ (अन्वयः) यत्र रात् न-र-ल-गाः श्रमीकमात्, वाजितुर्ययोः विश्रमः भवति, कविता-लता फल स्वादि- कोविद-मूतां तां रथोद्धताम् श्रवेत | (ater) स्यात्परं नगगरगबौ लघुर्गुरुथ, इत्यमी क्रमेण भवन्ति, सप्तमे सप्तमे चतुर्थे चतुर्थं चाक्षरे यतिर्भवति, कविता- लता - फलानां स्त्रादिनोऽर्थात् काव्यमार्मिका ये कोविदा:= परितास्तेषां समतां तां रथोद्धता मवगच्छत । अत्र प्रतिपाद(Sisiiisisis) इत्येकादश स्वरवर्णाः ॥ मवगच्छत । : (प्रति०) रात्= रगणात् । न-र-ल-गा:- नगणरगण-लघु-गुरवः । वाजितुर्पयोः सप्तमचतुर्थयोः । अवेत= 12 ( भाषा) जिस के प्रत्येक चरण में रंगण नगण रगण के अनन्तर एक लघु तथा एक गुरु हो और सातवें तथा चरण के अन्तिम अक्षर पर विश्राम हो उसे रथोद्धता उन्द जानो । इस के प्रति चरण में - ( SISHISS: 5 ) इस प्रकार स्वर चिह्न होते हैं ॥ २१ ॥ For Private And Personal Use Only

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