Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८) अतीव अत्यन्तम् । सुन्दरी सुश्रवा । अपशिष्टम विशिष्टम् ।। (भाषा) जिस के प्रति चरमण में तगण भगण सगण जगण और एक गुरु हों, तथा चौथे एवम् अन्तिम अक्षर पर विश्राम हो उस को प्रभावती छन्द कहते हैं। इस के प्रत्येक चरण के स्वरचिह्न (ssismssis) ऐसे हैं ॥ ३१ ॥ महर्षिणी यत्राऽऽयं त्रिकमभितोऽष्टमं नवान्त्य, पादान्त्यं निकमपि निश्चितं गुरुत्यात। विश्रामखिभिरय दिग्भिरर्थनीयो, व्याख्याताम-न-ज-रगैःप्रहर्षिणी सा।। (अन्धयः) यत्र अभितः आद्य विकम् अष्टमं भवान्य पादान्त्यं द्विकमपि गुरु निश्चित म्यात, श्रथ त्रिभिः दिग्भिः विश्रामःअर्थनीयः, म-न-ज-र-गः सा प्रहषिणः व्याख्याता ।। (टीका) यस्यां सर्वपादेषु प्रायत्रयम् अष्टमं दशमं चरणान्त्य-द्वयं चाक्षरं गुरु नियतं स्यात, तथा प्रादितस्त्रिभिश्चतुथादशभिश्च विरामो -ऽभिलषणीय: , मगगनगण-जगण-रगमा गुरुभिरुपलक्षिता सामहर्षिगी प्रोता । अत्र प्रतिचा गां क्रमेण (sssisIS/SS) इति स्वरवान्यासः ॥ . (प्रति०) आद्यम् पूर्वम् । त्रिकत्रितयम् । अभि. त= सर्वपादेषु । नवान्त्यं = दशमम् । द्विकं व्यम् For Private And Personal Use Only

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