Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (टीका) गदा चतुर्पु पादेषु जगण-तगण-जगण-रंगणा भवन्त्यर्थादेतैश्चतुभिर्गणैः प्रत्येकपादपूर्तिर्भवति, तथा मादितः पञ्चमे पश्चमे तदपरितश्च सप्तमे सप्तमेऽक्षरे चेद्यतिस्तदा कवीन्द्रजन-मान्यविद्वद्भिः वंशस्थ-नामक वृत्तमुच्यते। भत्र प्रतिपादम्( ISISsIISISIS ) इति स्वान्यासः । (प्रति०) घाणेषु= पञ्चसु । तुरङ्गमेषु= सप्तसु । उदीर्यते= रच्यते । स्पष्टं शिष्टम् ॥ (भाषा) जिसके प्रत्येक चरण में जगण तगण जगण और रगण हों तथा पांचवें और सातवे अक्षर पर विश्राम हो उसको कविलोग वंशस्थ नामक छन्द कहते हैं। इस के एक एक चरण में- (Isss||5.51s) ऐसे स्वाचिह्न होते हैं ।। २६ ॥ इन्द्रवंशा वंशस्थपादेवखिलेषु ते यया, वर्णा भवन्ति प्रथमे द्विमात्रिकाः। मत्काव्यरत्नाकरमन्धनोद्धरा स्तामिन्द्रवंशांब्रुवते कवीश्वराः॥३०॥ (अन्वयः) यथा अखिलेषु वंशयमादेषु ते प्रथमे वण द्विभात्रिकाः मन्ति, सत्काव्यरत्नावरम बनोक्षुराः कवीश्वराः ताम् इन्द्रवंशां त्रुबते ।। (टीका) अर्थः प्रस्फुट एव ॥ (१) — दण्डेन घट ' इति वतृतीया । For Private And Personal Use Only

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